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राजमहल के बरामदे में ही हुई।
__इसके लिए व्यवस्थित एक मंच पर तीन न्यायमूर्तियों की मण्डली बैठी। मंच की दायीं तरफ कुछ ऊँचाई पर तीन अलग-अलग आसनों पर राजकुमार विनयादित्य, पट्टमहादेवी और रानी लक्ष्पीदेवी बैठे थे। मंच से थोड़ी दूर पर ही अभियुक्तों को एक परदे के पीछे आवश्यक सुरक्षा के साथ रखा गया था। न्याय-पीठ के सामने एक दूसरा मंच, वहाँ से थोड़ी दूर पर बना था जिस पर इस पार चान ने वाले बैठे थे। उसके नजदीक ही एक और छोटा-सा मंच बनाया गया था जिस पर हुल्लमय्या और मायण बैठे थे।
तिरुवरंगदास आदि दूसरे लोगों को मंच के सामने, तीन-चार बाँस की दूरी पर अर्धवर्तुलाकार सजे आसनों पर बैठाया गया था।
न्यायपीठ के अध्यक्ष गंगराज ने कहा, "पट्टमहादेवीजी द्वारा गठित यह न्यायपीठ सत्य और धर्मनिष्ठ होकर, पक्षपात-रहित, अपना कार्य करेगा-इस न्यायपीठ की ओर से मैं जनता को यह आश्वासन देता हूँ। यह बात विदित करायी जा चुकी है कि हत्या करने के लिए षड्यन्त्र रचा गया है। अब यहाँ उसकी सच्चाई का पता लग जाना बहुत आवश्यक है। इनमें सन्देह पर गिरफ्तार किये गये व्यक्ति या गवाही देने वाले व्यक्ति भले कोई भी हों, उन्हें बिना छिपाये निःसंकोच और निडर होकर सच बोलना होगा। तलकाडु में हो उन्हें पकड़ा गया था। वहीं फैसला कर मामला समाप्त किया जा सकता था। स्वयं रानी सन्निधान ही वहाँ उपस्थित थीं। परन्तु यहाँ यही निर्णय हुआ कि इसका फैसला राजधानी में ही हो । क्योंकि इस घटना का अधिकतर सम्बन्ध पोय्सल राजघराने से है । इस षड्यन्त्र की खबर युद्ध-क्षेत्र में महासन्निधान तक पहुँच चुकी है। इसलिए यह व्यापक रूप से फैला हुआ दुष्ट कार्य मालूम पड़ता है। पहले तलकाडु के व्यवस्थाअधिकारी हुल्लमय्या स्पष्ट करेंगे कि इन्हें बन्दी बनाने का क्या कारण है और ये कौन
हैं।"
हुल्लमय्या उठे। आगे बढ़े । न्यायपीठ तथा पट्टमहादेवी और रानी लक्ष्मीदेवी एवं राजकुमार को प्रणाम कर उस मंच पर पहुँचे जो गवाही देने वालों के लिए बनाया गया था। सबसे पहले उन्होंने शपथ ली, "मैं जिनवल्लभस्वामी की सौगन्ध खाकर शपथ लेता हूँ कि इस न्यायपीठ के समक्ष जो कुछ कहूँगा, सच कहूँगा।"
गंगराज ने कहा, "यहाँ सच के मायने यह है कि जिसे आप जानते हैं और जितने ब्यौरे को आपको जानकारी है तथा अपने अन्तःकरण से जिसे आप सही समझते
"जैसी आपकी आज्ञा। अभी लगभग दो माह से मेरे अधिकार-क्षेत्र तलकाडु के गाँवों में हत्या के षड्यन्त्र की अफवाह इधर-उधर सुनाई पड़ रही थी। सर्व प्रथम यह खबर सन्तेमरल्लो की ओर से आयी। मैंने तुरन्त अपने अधिकार-क्षेत्र की सीमा
334 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार