________________
बोलनेवाला हूं, ऐसी शंका भी होती तो हमारा राजमहल से सम्पर्क ही कट जाता। देखेंगे, आपकी बातें सुनने के बाद मुझे भी लगता है कि उनमें शायद कुछ परिचित हों।"
"सो कैसे?"
"उस परदेवाली गाड़ी को मैंने अगस्त्येश्वर अग्रहार में देखा था। उस गाड़ी का किस्सा यों हैं," कहकर उसने अगस्त्येश्वर में घटी सारी घटना संक्षेप में सुना दी, और बोला, ''मेरे मन की बात अब शायद हुई है। अच्छा हुआ।" मगर उन खेल दिखानेवालों के बारे में कुछ नहीं कहा। बात उन्हीं के मुँह से निकले, यों सोचकर वह चुप रहा।
"यह बात अपने पहले ही क्यों नही बतायो?" हुल्लमय्या ने पूछा।
"मैं ही स्वयं उन्हें पकड़ लाकर रानी सन्निधान के समक्ष पेश कर सकूँगा, यही विचार कर नहीं कहा। न कहने का मेरा इरादा नहीं था। कब कहना संगत होगा, यह सोचकर और उस समय कहना ठीक न समझकर चुप रहा।" मायपा ने कहा।
"कम-से-कम रानीजी को तो बता सकते थे न?" "मैंने पहले ही अपने मन के विचार निवेदन कर दिये हैं।"
रक्षकदल के साथ नौकर बन्दियों को ले आया। खेल दिखानेवाले वे दोनों भी थे। शेष पाँच लोगों में एक बह था जो मायण के हाथ से छूटकर निकल गया था। शेष चारों में से एक को मायण ने पहचान लिया, वह दामोदर का नौकर था और उसका नाम गोज्जिग था। शेष तीन कौन थे, सो पता नहीं चला।
"रानी सन्निधान से एक विनती है।" उन पांचों में से एक की और उँगली दिखाकर हुल्लमय्या ने कहा, "यह इन षड्यन्त्रकारियों का नेता हैं । शेष ये चारों व्यक्ति उसकी रक्षा में लगे उसके साथी हैं। ये नाटकवाले और कोई नहीं, लोगों को उकसाकर इस दल में भरती करनेवाले प्रचारक हैं। ये सब धर्म के नाम पर राजपहल के कुछ लोगों की हत्या करने का षड्यन्त्र रच रहे हैं। इनसे पहले यहाँ पूछताछ करके, यदि रानी सन्निधान आज्ञा दें तो अन्तिम निर्णय के लिए इन्हें राजधानी भेजा जा सकता है। राजधानी में सभी के समक्ष इनसे पूछताछ की जा सकती है।"
"ऐसा ही करें।"
मायण की ओर इशारा करके पूछा, "इन्हें तुम लोगों में से किसी ने कहीं कभी देखा है ?" __ खेल दिखानेवाले दोनों ने कहा, "हाँ, हमने देखा है।" बाकी लोग बोले, "हमने नहीं देखा है।''
"कहाँ देखा है?" नाटक दिखानेवालों से पूछा। "कई जगह। राजधानी में भी देखा है।" "किस सन्दर्भ में?"
पट्टपहादेवी शान्तला : भाग चार :: 315