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"उसे वे स्वयं बता सकेंगे।" "मायणजी, इनका कथन सच है ? ये आपसे परिचित हैं?" "हाँ।"
"यदि आपसे परिचित होकर भी इन लोगों ने षड्यन्त्र में भाग लिया है तो आपको कैसा प्रतीत हो रहा है?"
"मैं विश्वाप्त नहीं कर सकता कि इन लोगों ने षड्यन्त्र में भाग लिया है।" "तो ये इन षड्यन्त्रकारियों के साथ से?" "उन्हीं से पूछना होगा।" "वे क्या बताएँगे? झूठ बोलेंगे।" "षड्यन्त्र का ब्यौरा जान सकते हैं ?'' मायण ने पूछा। "कहा न! धर्म के नाम पर रानी और राजकुमार की हत्या करना।" "ऐसा है!” उसके स्वर में आश्चर्य था।
"चकित क्यों होते हैं ? पहली बार जब आप आये तभी मैंने यह बात कही थी मगर आपने विश्वास नहीं किया। अब षड्यन्त्रकारियों से परिचित होने के बाद भी शंका करते हैं ? इस षड्यन्त्र की बात हमें मालूम है और इसके लिए प्रमाण भी हैं।"
"ऐसी बात हो तो मेरी एक सलाह है। इसके ब्यौरे इधर जानने के बदले राजधानी ही में इसकी जाँच हो जाना, मेरी दृष्टि से ठीक होगा। यह अकारण नहीं। उसे मैं आप और रानी सन्निधान के समक्ष निवेदन करुंगा। ये खेल दिखाने वाले कौन हैं, मैं जानता हूँ। फिर भी इनके बारे में अभी नहीं बता सकूँगा। इसके लिए मुझे क्षमा करें। उन्हें और इन लोगों को एक साथ राजधानी ले जाएंगे। मेरी एक विनती और है। ये खेल दिखानेवाले आपको कुछ लोगों के नाम सुझा सकेंगे। उन लोगों को भी राजधानी में बुलवा लाना चाहिए । रानी सन्निधान भी राजकुमार और धर्मदर्शी को साथ लेकर राजधानी में इस मौके पर आएं यह उचित होगा, क्योंकि वहाँ क्या हुआ इसकी सीधी जानकारी रानीजी को मिलनी चाहिए । इन बातों की भी जानकारी रानी सन्निधान को होनी ही चाहिए। भाग्य से महासन्निधान तब तक विजय प्राप्त कर राजधानी पहुँच जाएँ तो और भी अच्छा होगा। आप जब राजधानी जाएँगे तब यहाँ की व्यवस्था में और अधिक सतर्कता और चुस्ती लानी होगी यह तो आपको विदित ही है। इसके लिए समुचित व्यवस्था कर दें तो अच्छा है। हमें जितनी जल्दी हो सके, राजधानी पहुँचना है।" मायण ने कहा।
हुल्लमय्या ने.रानी की ओर देखा।
"अभी तो इन लोगों को ले जाएँ। शेष विषय पर बाद में निर्णय करेंगे।" रानी बोली।
कैदी ले जाए गये। अब वहाँ तीन ही लोग रह गये। तब मायण ने कहा.
316 :: पट्टमहादेवी शान्तल! : भाग चार