________________
"राजधानी में भी इसी तरह के षड्यन्त्र की बात फैली है। पट्टमहादेवीजी को भी यह बात मालूम है। इसलिए सबका बहीं जाना बेहतर है।"
"आपकी क्या राय है, हुल्लमय्याजी?' रानी ने पूछा।
"मायणजी को सलाह ठीक है। वही करेंगे। राजमहल में राजघराने वालों की हत्या का षड्यन्त्र! इस सम्बन्ध में सारी तहकीकात सबके समक्ष राजधानी में होना ही ठीक है-यह मेरा भी विचार है।" हुल्लमय्या ने कहा।
"वैसा ही कीजिए।' रानी लक्ष्मीदेवी ने निर्णय सुना दिया।
जयकेशी पर आक्रमण की गतिविधियाँ धीमी ही थीं । निश्चित रूप से निर्णायक स्थिति में युद्ध नहीं चल रहा था। बिट्टिदेव जिस तरह की रसद आदि की प्रतीक्षा में थे, वह पहुँच गयी थी। हलिवरू नायक ने कटुकड़ो सेना में साल वनवासी के दक्षिणपश्चिम की ओर कदम्बों से लड़कर विजय पायी थी, और उनके पास ओ रसद थी उसे अपने कब्जे में कर लिया था। रसद से भी बढ़कर, उनके पास जो दो सौ अच्छे घोड़े थे, उन्हें भी अपने कब्जे में ले लिया था। उन घोड़ों को पकड़ लाकर बिट्टिदेव को समर्पित कर उसने अपनी स्वामिनिष्ठा दिखायी थी। कुछ बीमार घोड़ों की चिकित्सा रानी बम्मलदेवी की देखरेख में हो रही थी। कुछेक तो अच्छे होकर फिर युस के लिए तैयार थे। परन्तु अधिक अश्व मर गये थे, और कुछ कमजोर हो गये थे। ठीक वक्त पर देखभाल होने के कारण बीमार घोड़ों को अलग रखा था इसलिए रोक संक्रामक नहीं बन सका। होलियेरू नायक ने जो घोड़े लाकर दिये उनसे घुड़सवार सेना पहले की ही तरह सशक्त हो गयी थी। इस सेना में डाकरस की सेना भी आकर शामिल हो गयी थी।
___ यों ही बेकार बैठे-बैठे समय बिताना बिट्टिदेव के लिए कठिन हो रहा था। इस समय जयकेशी की सेना द्वारा बिना रसद के अन्तिम लड़ाई के लिए हमला करने की प्रतीक्षा न करके, स्वयं हम ही जयकेशी पर क्यों न हमला कर दें', यों सोचकर उन्होंने हमला कर देने का हो निश्चय किया। इसका सभी दण्डनायकों ने स्वागत किया। बिट्टियण्णा जो बीमार था, अब चंगा हो गया था। उसकी राय थी कि अब तक प्रतीक्षा करते बैठना ही गलत था, और हमारी कमजोरी का ही प्रदर्शन हुआ। राजमहल के वैद्यजी ने कहा, अबकी अमावस्या के बाद हमला किया जा सकता है तब तक आठदस दिन, अब जैसे चुपचाप बैठे हैं, वैसे ही रहना अच्छा है। आखिर उनके निर्णय के अनुसार सावन सुदी पंचमी के दिन हमला करने का निश्चय हुआ।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 317