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" हमारे वर्तमान राजा ही बदल गये हैं तो मुझे उस बात से क्या लेना-देना ?" "फिर श्रीवैष्णन्त्रों से द्वेष करने की प्रेरणा तुमको किसने दी ? जैनियों ने ?" "नहीं, श्रीवैष्णवों ने ही।"
"
'क्या कहा श्रीवैष्णवों ने ? उन लोगों में भी आपस में इस तरह का द्वेष भाव
हैं ?"
"सुना है कि उसके धर्मगुरु ने उससे कहा, 'तुम अगस्त्य के पात्र का अभिनय मत करो, भस्म लगानी पड़ती हैं, भस्म श्रीवैष्णवों के लिए वर्जित है। चाहो तो त्रिपुण्ड लगाकर अगस्त्य का अभिनय कर सकते हो ।' मगर रंगमंच पर नाटक करानेवाले सूत्रधार उस भागवत ने नहीं माना। उन्होंने स्पष्ट कह दिया कि हम अपनी रीति में कुछ भी परिवर्तन नहीं करेंगे। देशिकन को अभिनय करने की लत थी, दोनों ओर से दवाव बढ़ रहा था। टॉंग तोड़ने पर अकल आएगी, यह चेतावनी भी उसे मिल चुकी थी।" "दूसरों की टाँग तोड़कर तुम्हें पेट पालना है ?'
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"यह तो अपनी गुजर-बसर का धन्धा है। पाप-पुण्य उन्हीं का, जिन्होंने यह
काम करवाया "
"तुम ही न्याय कर लेते हो और निर्णय भी ?"
"हाँ, मैं अपने बारे में तो यही कह सकता हूँ।"
" यह बोलों का राज्य नहीं । तुम्हें मालूम नहीं कि यह पोय्सलों का राज्य है ?"
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'मालूम है। मगर उससे और मेरे अपने इस काम से क्या सम्बन्ध ? " "हमारे देश में इस तरह का धर्मद्वेष फैलाने के काम को हमारे महाराज स्वीकार नहीं करते। यहाँ सभी धर्म समान हैं। "
" वह आपके राजनीतिक व्यवहार का नियम हो सकता है। और फिर हमें काम देकर रोजी-रोटी देनेवाली बह आप ही के श्रेष्ठ पोटसल राज्य की ही प्रजा है। अभी जिसने मार खायी, वह भी आप ही के यहाँ को प्रजा है। आप ही देख लें, आपकी राजनीतिक व्यवहार संहिता किस तरह काम कर रही हैं, आपके यहाँ के ही प्रजाजन में!" व्यंग्य से उसने कहा ।
"तुम जैसे बाहर के लोग ही ऐसे परस्पर विरोधी विचार जनता में फैलाते हैं, हमें यह सब मालूम है। पत्थर मारने का आज का यह काम भविष्य में किसी बड़े कार्य को साधने का पूर्वाभ्यास है। अब तुम मेरे पास से खिसक कर भाग नहीं सकोगे। सभी बातों की तहकीकात जब तक न हो जाए, तब तक तुमको छोड़ेंगे नहीं। चलो मेरे
साध्य ! "
" यहाँ मेरे रहने की जगह नहीं है। अलावा इसके, मुझे तुरन्त तलकाडु की तरफ जाना है। मेरे लिए गाड़ी प्रतीक्षा कर रही है।" "गाड़ी में और कौन-कौन हैं ?"
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार:: 301