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करनेवाली दासियाँ अपने-अपने काम समाप्त कर इस तरफ आयौं। पट्टमहादेवी के विश्वामागार की दासी द्वार के पास एकाग्र होकर वीणावादन सुन रही थी। नौकरानियों ने संकेत से पूछा, 'क्या है ?''पट्टमहादेवीजी वीणा बजा रही हैं, शोर मत करो।' उसने भी संकेत से बताया। वीणा- माधुरी के आस्वादन में तल्लीन हो, यह द्वार को थाहा. सा सरकाकर बैठी रही। कुछेक दासियाँ चुपचाप वहां से चली गयीं और कुछ वहीं बैठी वीणा-माधुरी का आनन्द लेने लगीं । सुनते-सुनते उनकी अंख झपकी लेने लगा। सुबह से शाम तक काम करके थक जो गयी थी। अन्दर से एक बार वीणा तीव्रगति से तार-स्थानी में बज उठी और फिर मन्द होती गयी और रुक गयी। वीणा के श्रम जाने के बहुत समय के बाद दासी की एकाग्रता टूटी। वह जगी। घबराकर वह इधरउधर झाँकने लगी। बाकी दासियाँ भिन्न-भिन्न भंगिमाओं में वैसे ही दीवार से लगी सो रही थीं। दासी ने धौरे से द्वार सरकाकर, अन्दर झाँककर देखा।
पट्टमहादेवी पलंग के तकिये पर लगी बायीं भुजा पर वीणा रखे, अर्ध-शयनावस्था में लेटी थीं। मिजराव का दायाँ हाथ तार पर ज्यों-का-त्यों था। मोड़ पर चलनेवाला हाथ फिसलकर पलंग से लटक रहा था। दीये की रोशनी उनके मुख्न पर प्रखर होकर पड़ रही थी। देखकर नौकरानी कुछ घबरा गयी। एकटक देखती रही। पट्टमहादेवी के श्वासोच्छवास के अनुसार बीणा चढ़ती-उतरती रही। उसने पलँग के पास जाकर वीणा को हटाने की सोची। पट्टमहादेवी का दायाँ हाथ वीणा पर हो था। क्या करना चाहिए, उसे नहीं सूझा। थोड़ी देर सोचकर उसने पट्टमहादेवी के हाथ को तकिये की ओर धीरे से सरकाया। गहरी नींद में होने के कारण वे जगी नहीं । दासी ने वीणा को लेकर दीवार से सटाकर रख दिया। दीप को एक कोने की ओर सरकाकर रोशनी को आड़ दे दी। फिर पलंग के पास आयी। पट्टमहादेवी के वस्त्र कुछ अस्त-व्यस्त थे। उसने सोचा कि जगाकर ठीक तरह से सुला दें, पर कहीं जग गयी और फिर नींद न आयी तो? यही सोचकर वह धीरे-से चादर ओढ़ाकर, किवाड़ लगाकर बाहर चली आयी। बाकी दासियों को जगाकर उसने यथास्थान भेज दिया। फिर स्वयं सोने के लिए चली गयी।
दूसरे दिन शान्तलदेवी कुछ देर से ही जार्गी। जागते ही सामने की दीवार पर लगे आईने में उन्होंने अपनी छवि देखी। नजर एक तरफ हो गयी तो देखा कि वीणा दीवार से सटी एक ओर रखी है। पिछली रात की याद हो आयी । बजाना कब रुका यह उन्हें स्मरण ही नहीं हो रहा था ! उसी धुन में उठकर उन्होंने अपने प्रात:कालीन कार्यों को समाप्त किया। नाश्ता करने के बाद मन्त्रणागार की ओर चली गर्थी । विश्रामागार से निकलते समय मादिराज को बुला लाने का आदेश भी देती गयी थी। वह भी ठीक वक्त पर मन्त्रणागार में उपस्थित हो गये। जल्दी ही विनयादित्य भी वहाँ आ पहुँचा।
युद्ध-शिविर से प्राप्त खबर, उन्हें सुनाकर, आगे के कार्यक्रम पर विचार-विमर्श करके यह निश्चय किया कि पहले जल्दी से रसद भेज दी जाए। शेष सामग्नी बाद में
296 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार