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में दण्ड से अधिक प्रभावशात्री अस्त्र हैं। "
"तुम्हारी ऐसी नीति इस तरह के लोगों के लिए उपयुक्त नहीं होती। इनके साथ कड़ा बरताव करना चाहिए -- एक मार में दो टुकड़े।"
"तुम्हारी आयु ही ऐसी हैं, अप्पाजी। अभी केवल उत्साह है, जोश है। अनुभव का तरीका ही अलग हैं। बाहुबली स्वामी क्यों विश्वमान्य हुए, जानते हो ? उन्होंने प्रेम और आदर से सब कुछ त्याग दिया। अपनी स्वयं की शक्ति सामर्थ्य से क्षात्रधर्म का अनुष्ठान किया, विजय पायी। जो भी उन्होंने जीता उसका पूरा-पूरा भोग करने का उनका अधिकार भी था। वह न्याय और धर्म-सम्मत भी था, अपने उस अधिकार का उपयोग करते तो उनपर कोई कलंक भी नहीं लगता। परन्तु उस हालत में वे केवल एक राजा मात्र रहकर लोगों की स्मृति में रह जाते, अब वह केवल एक राजा नहीं, एक शाश्वत विश्व मान्य देव हैं। हम उस स्तर तक नहीं पहुँच सकते तो भी उनके दर्शाये पर चलने का प्रयत्न सोहने करना ही चाहिए न
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" सभी बाहुबली स्वामी नहीं बन सकते। हम विश्वास करते हैं कि अच्छे और बुरे दोनों का सिरजनहार भगवान् है। हम उसे दुष्ट शिक्षक और साधु-रक्षक कहते हैं। इसका क्या कारण? मनुष्य होकर हम भी तो वही काम करते हैं। राजा प्रत्यक्ष देवता माने जाते हैं; वह इसीलिए कि वह दुष्ट को दण्ड देनेवाले और साधुरक्षक हैं। ऐसी हालत में दुष्टों को बिना दण्ड दिये छोड़ देना गलती नहीं होगी ?"
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'अज्ञानी गलती करे तो उसे दण्ड देना उसकी दवा नहीं। उसे शिक्षित करना चाहिए: शिक्षण पाना हो तो पहले सीखने की लगन होनी चाहिए। उस लगन को पैदा करने के लिए प्रेम और आदर ही साधन हैं- यह मेरा अनुभव है। यह बात तुम्हें इस उम्र में शायद मान्य नहीं होगी। परन्तु पीछे चलकर मेरी बात की सत्यता स्वयं स्पष्ट हो जाएगी। "
"तुम कुछ भी कहो माँ, इस तरह के लोगों पर इस सबका कोई असर नहीं
होगा । "
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अप्पाजी, जब तुम्हारे हाथ में शासन होगा तब तुमको जैसा ठीक लगे, कर सकते हो। अभी यह सन्निधान के हाथ है। उन्हें जैसा लगता है, वैसा करते हैं। अब तक बही करते आये हैं।"
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" उन पर छोड़ देते तो उनका निर्णय कुछ और ही होता। हर बात में वे तुम्हारा ही कहना मानते हैं।"
"तो क्या तुम समझते हो कि जो सलाह मैं देती हूँ वह ठीक नहीं ?"
"माँ, तुम्हारा मार्ग सबको अच्छा नहीं लग सकता। वह सब काल्पनिक राज्य के लिए सुन्दर है ।"
" जो भी देखता है, वह कहता है कि तुम स्वभाव और आचरण में मुझसे ही
284 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग बार
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