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है कि उनको पोष्य पुत्री का बेटा ही सिंहासन पर बैठे । इसके लिए उन्होंने धर्म की
आड़ लेने का प्रयत्न किया। परन्तु इस बारे में लोकाचार भी है। इसलिए तुम चिन्ता मत करी । मैं. मन्निधान और विश्वस्त सात-आठ दण्डनायक हम सबने इस पर विचारविमर्श करके, कहीं भी किसी भी कारण से धर्म के नाम से भेदभाव पैदा न हो, इसके लिए उचित व्यवस्था की है। इन दास को निष्ठावान पोयसल प्रजा की एकता को तोड़ना सम्भव नहीं। दास के विषय में राजमहल को पहले ही शंका उत्पन्न हो गयी थी, इसलिए उन पर गुप्तचरों को लगाकर यह इन्तजाम कर दिया है कि यदि उनका काम राष्ट्रद्रोह करनेवाला हो हो उन्हें वहीं तब-का. तब रोक दिया जाए । गुप्तचरों को यह अधिकार भी दिया गया है। अच्छा, छोड़ा यह सब। तुम्हारे सन्तोष के लिए यह सब कहना पड़ा। कल तुम या तुम्हारे भाई हमसे असन्तुष्ट न हों, कभी तुम लोगों को यह नहीं सोचना चाहिए कि हारने तुम लोगों के हित की रक्षा नहीं की। यह दास सन्निधान
और मुझमें तो मतभेद पैदा करने की कोशिश कर हो रहे हैं। यह कहते फिर रहे हैं कि पट्टमहादेवी बनने की महत्त्वाकांक्षा से तुम्हारे बड़े चाचा बल्लाल महाराज और उनके बेटे नरसिंह को, और बेटे के समान जिस उदयादित्य को पाला-पोसा, उन सबकी मृत्यु मेरे कारण हुई। कहते फिर रहे हैं कि इनको मैंने मरवा डाला।"
"इस तरह की झूठो लातें फैलाने वालों को चौराहे पर सूली चढ़ा देना चाहिए, तुम चुप क्यों रहो?'
"तिनके सलवार का प्रयोग? गेटा. वास्तव में सन्निभान यह बात सुनकर आग-बबूला हो उठे थे। मैंने ही उन्हें शान्त किया। करने के लिए कोई काम न हो तो ऐसे बेकार दिमाग में शैतान प्रवेश कर जाता है। इसलिए उनको काम देकर उस शैतान को भगा देने का प्रयत्न किया है।"
"माँ, तुम सब तरह से टीक हो । पर अपात्र के लिए ऐसी सहानुभूति उचित नहीं। एक शत्रु के साथ ऐसा व्यवहार?"
"शत्रु को प्रेम से जीतना चाहिए बेटा, यही मानवीयता का लक्षण है। यही हमारा ध्येय होना चाहिए।"
"मेरे गुरुजी ने संस्कृत पढ़ाते समय एक कहानी बतायी थी। आग में गिरने वाले बिच्छ्र को बचाने पर, उसने एहसान मानने के बदले बचाने वाले को ही डंक मार दिया। यह दास उसी बिच्छू के जैसा है।"
"बेटा, ज्ञानी लोगों ने हमें सावधानी बरतने के लिए ऐसी कहानियाँ कही हैं। सत्य का पालन करनेवालो एक गाय ने बाघ का दिल बदल दिया था न? एक बार यह भी मान लें कि विवेकहीन पशु अपने जन्मजात गुण को नहीं बदलते, लेकिन विवेचनाशक्ति जिसमें हो वह व्यक्ति चाहे कितना ही दुष्ट क्यों न हो, कभी-न-कभी उसमें परिवर्तन आ ही जाता है। मेरा विश्वास है कि प्रेम और आदर मानव के हृदय-परिवर्तन
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 283