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"तो मैं आपके लिए अनचाही हूँ?" फुसफुसायो । उसकी आँखों से आँसू झरने
लगे।
" देखा, बात को समझने के पहले ही तुम निर्णय कर बैठती हो, इसीलिए ऐसा होता है। तुम्हारे लिए बेलुगोल अवांछित स्थान है न?"
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'दोबारा कहना पड़ेगा ?"
'आखिर ऐसा क्यों ?"
" अवांछित स्थान कहने के बदले यों कह सकते हैं कि यहाँ वांछित कोई चीज
"नहीं।" कुछ भी हो, लक्ष्मीदेवी प्रकृतिस्थ होने लगी थी।
हो ?"
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'लाखों लोगों के वांछित इस स्थान में तुम्हारे लिए क्या कुछ नहीं ?"
"मैं कह नहीं सकती। पहले तो यह नंगे बाहुबली मुझे पसन्द नहीं । "
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'तुम्हारा अपना लड़का नरसिंह जब नंगा खड़ा होता है तो उसे प्यार करती
"वह तो भोला-भाला बच्चा है।"
"ये, बाहुबली भी भोले-भाले ही हैं। उनके इस निर्मल चेहरे को देखो तो तुम्हें मालूम पड़ेगा। तुम सिर उठाकर देखो तब न ?"
"
'कुछ भी हो अन्य देवता के प्रति मेरे मन में कोई भावना जगती ही नहीं। यहाँ मैं यों ही साथ हूँ। यह स्थान एक तीर्थ है, यह भावना ही मेरे मन में उत्पन्न नहीं हो पा रही है। मुरे मन्दिर देवमन्दिर नहीं लगते।"
'शायद यह प्रसाद प्रसाद नहीं लगता, इसीलिए गले में अटक रहा हैं ?" "नहीं, यह मन्दिर मेरा सर्वनाश करने के लिए निर्मित है। यहाँ की कोई चीज गले में उतरेगी भी कैसे ? आप एक स्त्री के चौथे पति बनते तो बात समझ में आ जाती ।"
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'यह कैसी बुरी विचारधारा है !"
"बुरी विचारधारा क्यों; द्रौपदी के भी पाँच पति थे न ? पुरुष के लिए जब चारछह स्त्रियाँ हो सकती हैं तो... ?"
" स्त्रियों के लिए बहु-पति क्यों न हों ? यही न तुम्हारा प्रश्न ? चाहती हो तो बताओ।"
" बातों-बातों में कह भी दें तो कोई कर सकती हैं? मेरे पिता ने मुझे सीता, सावित्री और अरुन्धती आदि पतिव्रता नारियों की रीति की शिक्षा दी है।"
" वे सब एक पति की अकेली अकेली पत्नियाँ हैं। तुम्हें ऐसी पत्नी न बनाकर चौथी पत्नी क्यों बनने दिया ? साध्वियों की बात भी उन्होंने अपने ही ढंग से बतायी होगी ?"
"इसके माने ?"
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार: 247