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'क्यों, तुम्हें मालूम नहीं ? उदय की लड़की की मृत्यु और फिर स्वयं उसका मरण, इन घटनाओं के साथ अब कुमार विनय की अस्वस्थता - इस पर... " बिट्टिदेव रुक गये।
इतने में नौकरानी आ गयी ।
"देखिए, रुद्रों के आने का मतलब है, सब तैयार है। विलम्ब करने से नाश्ता ठण्डा हो जाएगा।" शान्तलदेवी बोली ।
"यहीं नौकरानी रहेगी, तुम भी साथ चल सकोगी न?"
" बच्चे के पास किसी को रहना चाहिए नौकरानी के साथ। वैद्यजी या मैं सदा बच्चे के पास रहते आये हैं। "
" फिर भी अकेले बैठकर खाना...'
" कुमार बल्लाल साथ रहेगा। छोटे अप्पाजी रहेगा। रानियाँ रहेंगी । "
"ठीक, तब तो कोई चारा नहीं।" कहते हुए एक लम्बी साँस छोड़ चिट्टिदेव वहाँ से उठे और अन्दर चले गये।
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'राजघराने में दो दुखद घटनाएँ घटीं। राजकुमार बीमार पड़े। यह सब महाराज के निरासक्त बन जाने में कारण तो हैं ही, इनके अलावा कोई और जबरदस्त कारण भी रहा होगा। ऐसा न होता तो बीच ही में बात को क्यों रोक देते ?' शान्तलदेवी ने सोचा, 'इन सबसे भी कोई बड़ी बात अवश्य घटी है। युक्ति से उस बात को जान लेना चाहिए और उनकी परेशानी एवं निरासक्ति का निवारण करना चाहिए। इस वक्त जल्दी में किसी बात को छेड़ना ठीक नहीं। पहले राजकुमार स्वस्थ हो जाएँ, बाद में देखेंगे।' यों शान्तलदेवी विचार करने लगीं।
शान्तलदेवी की इस कष्टपूर्ण स्थिति में यादवपुरी की और सवतिगन्धवारण सदि की सारी बातें सुनाकर उन्हें और ज्यादा कष्ट न देने के इरादे से वहाँ की सारी बातों को न कहने का निर्णय इधर बिट्टिदेव ने भी कर लिया था। जल्दी ही विनयादित्य के स्वास्थ्य में सुधार आ गया। शान्तलदेवी युगल शिव मन्दिरों की ओर विशेष ध्यान देने लगीं। बिट्टिदेव अपना अधिक समय मन्त्रालय में बिताते रहे ।
वास्तव में रानी लक्ष्मीदेवी को महाराज का सन्दर्शन उपाहार के या भोजन के समय अचानक मिल जाता। मुद्दला से वह कुछ बातें जान सकी थी। महाराज मन्त्रणालय से निकलते तो मन्दिर की तरफ चले जाते और रानी बम्पलदेवी, राजलदेवी के साथ कुछ समय व्यतीत किया करते। यह बात उसे मुद्दला से ज्ञात हो गयी थी। परन्तु महाराज को अकेला पाकर पट्टमहादेवी उनके विश्रामागार में आयी गयी हों, ऐसी कोई बात उसे मालूम नहीं हुई। उसके विश्रामागार में भी महाराज नहीं आये। ऐसा क्यों ? उसके दिमाग को यही बात साल रही थी। कुछ समय प्रतीक्षा करने के बाद मौका पाकर वह एक बार पट्टमहादेवी से उनके विश्रामगृह में मिली ।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 251