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हैं। दुनिया अकल से शून्य केवल मांस का एक लोंदा नहीं। उसके दिमाग में बातों को समझने की शक्ति है। वह जानती है कि आपके इस संयम के पर्दे के पीछे क्या-क्या छिपा है। आप पट्टमहादेवी हैं इस डर से कोई कहता नहीं। इस राजमहल में आपके अलावा किसी दूसरे का नाम कोई नहीं लेता, आपने सबको ऐसा बना रखा है। यदि लोग किसी का अच्छा भी सोचें तो कोई-न-कोई बहाना बनाकर ऐसों को दूर कर देती
शान्तलदेवी की सहनशक्ति टूट गयी। उन्होंने घण्टी बजायी। नौकरानी अन्दर आयी। उससे कहा, "रानीजी अपने विश्रामगृह में जाएँगी।"
नौकरानी ने परदा उठाया। रानी को मार्ग दिखाया।
लक्ष्मीदेवी ने इसकी अपेक्षा नहीं की थी। वह एक बार पट्टरानी की ओर, फिर परदे की तरफ देखकर उठकर चली गयी।
शान्तलदेवी बहुत देर तक चिन्तामान हो बैठी रहीं । लक्ष्मीदेवी की बातें ऐसी लग रही थी कि मानो धारदार तलवार चल रही हो, जिधर चले उधर ही काटे । लक्ष्मीदेवो की आज की दातें शायट यादवपुरी की बातों से प्रेरित हैं। सन्निधान और रानी के बीच क्या बातचीत हुई थी, उसे तो यह जानती न थीं। सन्निधान ने भी इस सम्बन्ध में कुछ कहा नहीं था। वे जानते थे कि यह सुनकर वृथा ही पवित्र हृदयवाली शान्तल्लदेवी का दिल दुखेगा। अब रानी लक्ष्मीदेवी की बातों को सुनने के बाद शान्तलदेवी के मन में कुतूहल जगा कि जानना चाहिए कि वहाँ क्या बातें हुईं। यों मन-ही-मन घुलते रहने से लो यही ठीक होगा कि वस्तुस्थिति समझकर, यह विचार किया जाए कि आगे क्या करना हैं। उन्होंने घण्टी बजायी।
नौकरानी आयी। उससे कहा, "चट्टला को या पायण को बुला लाओ।" नौकरानी चली गयी। कुछ ही देर में चट्टला आ गयी।
काफी देर तक एकान्त में शान्तलदेवी चट्टला से बातें करती रहीं। अचानक सन्निधान के आगमन का सूचक घण्टा-नाद हुआ। पट्टमहादेवी के विश्रामागार का द्वार खुला। बिट्टिदेव ने अन्दर प्रवेश किया।
चट्टला, आदरसूचक ढंग से सिर झुकाकर जाने को तैयार हुई।
"चट्टला, तुम यहीं रहो।" कहते हुए बिट्टिदेव पलँग पर बैठ गये। शान्तलदेवी, जो खड़ी हो गयी थीं, अन्न बगल के आसन पर बैठ गर्यो।
"देवी, एक नयी खबर मिली है।" कहकर रुके बिट्टिदेव । "क्या? कोई धार्मिक क्रान्ति...?" ''तुमको ऐसी खबर मिली है?" "खबर तो नहीं आयी है। परन्तु अन्दर-ही-अन्दर यह राज्य भर में फैली हुई
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258 :: पट्टपहादेती शान्तला : भाग चार