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प्रधान मंच पर खीच में कुछ ऊँचे आसनों पर महाराज और पट्टमहादेवी विराज रहे थे। उसी पर थोड़ा नीचे रानियाँ और राजकुमार भी उचित आसनों पर बैठे थे। बाकी लोग प्रधानजी, मन्त्रिगण, दण्डनाथ सब अर्थ- वर्तुल वेदिका के नीचे महासन्निधान के सामने सजे आसनों पर विराज रहे थे।
सन्निधान के विश्वासपात्र कुछ लोग मन्त्रणागार की दीवार से सटकर बैठे हुए
थे ।
बिट्टिदेव ने सूचित क्रिया, "प्रधानजी, पहले इस सभा को बुलाने का उद्देश्य बताएँ, बाद को सभी की राय लेंगे।"
प्रधान गंगराज उठ खड़े हुए, झुककर प्रणाम किया और कहा, "जैसी आपकी आज्ञा । "
८.६
बिट्टिदेव ने कहा, 'आप बैठकर ही बताइए।"
"कोई हर्ज नहीं। जब शारीरिक स्थिति इस लायक नहीं रहेगी और मैं खड़ा होकर इस सिंहासन के प्रति गौरव न दे सकूँगा तब मुक्त कर देने की प्रार्थना करूँगा, मगर सन्निधान के सामने बैठकर बोलने जैसी धृष्टता में नहीं करूँगा। पट्टमहादेवीजी. रानियाँ, मन्त्रिगण और दण्डनायको! इस सभा ने आप लोगों में कुतूहल का भाव पैदा किया होगा, क्योंकि ऐसा समावेश इधर कुछ समय से हुआ ही नहीं। लेकिन शत्रुओं के हमले की खबर मिलती है तब इस तरह की सभा बुलायी जाती है। अभी तो इस तरह के हमले की कोई खबर किसी तरफ से नहीं आयी है। परन्तु राज्य के पश्चिमोत्तर की तरफ जो घटनाएँ घटी हैं, उनकी वजह से हमें शंका हुई है कि उनसे हमारे अस्तित्व को ही धक्का लग सकता हैं। आप सभी लोगों को मालूम ही है कि कदम्बवंशीय जयकेशी हमारी ही तरह चालुक्यों से अलग हो, स्वतन्त्र बन जाने की इच्छा प्रकट कर उसके लिए तैयारी भी करता रहा। वह चालुक्यों की मदद करने के लिए तैयार भी नहीं था । किन्तु सिन्द घराने के अचुगी को उकसाकर उसकी सहायता करके, चालुक्य विक्रमादित्य ने जयकेशी को हरा दिया था। वहीं जयकेशी अब उनका दामाद बनने जा रहा है। पहले पोसलों पर हमला करवाकर हार खाने वाले चक्रवर्ती अब इस तरह अपना बल बढ़ाकर फिर से हम पर हमला करने की तैयारी कर रहे हैं। इससे पहले क्यों न हम ही हमला कर दें और हेद्दोरे तक अपना अधिकार जमा लें! यही सन्निधान की राय है। इसलिए फिलहाल क्या करने पर पोटसल राज्य की भलाई हो सकती है, इस बारे में विचार के लिए यह सभा बुलायी गयी है। यहाँ उपस्थित हर महानुभाव अपनी सलाह दे सकते हैं।" इतना सूचित कर गंगराज महाराज को प्रणाम कर बैठ गये ।
वित्त सचिव मादिराज उठे, प्रणाम किया, और बोले, "सन्निधान का विचार तो
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग 261