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धर्म के कारण उत्पन्न गुटबन्दी गौण विषय है। इसके बारे में बाद में भी विचार किया जा सकता है। अभी तो निर्णीत विषय पर ही चर्चा करना उचित होगा। हो सकता है, मन्दिर के धन के उपयोग की आवश्यकता न पड़े इसलिए आगे के कार्यक्रम पर विचार काना अच्छा होगा।'
"वहो करेंगे। चिगज, बैठ जाइए । हम शीघ्र ही हानुंगल जाएँगे। आवश्यक सैन्य दल वहाँ पहुँचे, इसको व्यवस्था हो। हमारे साथ कुमार बल्लाल चलेंगे। कोवलालपुर की तरफ थोड़ी सेना के साथ छोटे बिट्टिदेव जाएँ, और वहाँ की राजकीय व्यवस्था का, चोकिमय्या की मदद , मिकहाण करें। चकिमच्या ध्यान रखें कि चाल फिर हमारी भृमि पर कदम न रख सकें। उदयादित्य ने इस काम का निर्वाह बड़ी दक्षता से किया। हम उसे खोकर अभागे हो गये। अब कुमार बल्लाल को साथ ले जाकर उसे बलिपुर के आसपास कहीं नियुक्त कर देंगे। सिंगिमय्या और छोटे चलिकेनायक को और उनके बच्चों को उसके साथ छोड़ रखने का विचार भी हमने किया है। उत्तर और दक्षिण में हमारे दो बेटे रहेंगे। यहाँ राजधानी में पट्टमहादेवीजी के साथ विनयादित्य रहेगा। राजधानी अब प्रधानजी की सीधी देख-रेख में रहेगी। डाकरसजी का यादवपुरी हो में रहना अच्छा है। माचण दण्डनाथ बाद को हमारे साथ आ मिलें। पुतीसमय्याजी, बिट्टियाणा और मरियाने भरत हमारे साथ चलेंगे। रायण दण्डनाथ पर वेलापुरी और सोसेकर की देखभाल का दायित्व होगा। अब दो-तीन दिन के भीतर ही हम यात्रा पर निकल पड़ेंगे । मादिराजजी राजमहल के नये नियमों की जानकारी तुरन्त गाँव-गाँव भेज देंगे और कर-संग्रह करेंगे। एचिराज और बोपदेव यहीं रहकर योद्धाओं को शिक्षण देंगे। केलदहत्तिनायक रानी लक्ष्मीदेवी और कुमार नरसिंह की रक्षा के लिए यादवपुरी में उनके साथ रहेंगे।''
केलदहत्तिनायक बोले, "वहाँ दण्डनायक डाकरसजी स्वयं होंगे, इसलिए मैं सन्निधान के साथ रहूँ तो..."
"छोटी रानी दुसरों पर विश्वास नहीं करती, इसलिए आप ही रहें। यदि वे यहीं रहना चाहें तो हमें कोई एतराज नहीं । यदि वे यादवपुरी जाना चाहें तो वहाँ रह सकेंगी,
और उनके और कुमार नरसिंह के स्वास्थ्य की देखरेख के लिए जिस वैद्य को वे चाहें उन्हें नियुक्त कर लें।" इतना कहकर ब्रिट्टिदेव उठ खड़े हुए।
सभा समाप्त हुई। सब उठकर चले गये। राजमहल वाले भी अपने-अपने निवास की ओर चल दिये। सभी को मालूम हो गया था कि महाराज ने स्वयं अपना निर्णय विस्तार के साथ सुना दिया है। शान्तलदेवी को आश्चर्य हुआ कि महाराज ने इन सब बातों को उनसे भी नहीं पूछा। वह कुछ परेशान भी हुई। उन्होंने उनके दर्शन करने चाहे। दोपहर बाद वे महाराज के पास गयी। इसके पूर्व उन्होंने बम्मलदेवी से बातचीत कर ली थी।
पट्टमहादेवा शान्तला : भाग चार :: 267