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दोरसमुद्र पहुंचने पर रेविमय्या ने सारी बातें पट्टमहादेवी को बतायीं। आचार्यजी के सन्दर्शन और उस वक्त जो बातें हुईं वह सब सुनकर शान्तलदेवी को कुछ सन्तोष हुआ।
कितनी ही सतर्कता बरती जाए तो भी तिरुवरंगदास अपनी बेटी को जो बातें बताता वह दूसरों को जान पाना सम्भव नहीं था। रानी लक्ष्मीदेवी की चहेती नौकरानी मुद्दला पर विश्वास नहीं किया जा सकता या-यह बात रेविमय्या जान गया था। इसलिए अन्य नौकरानियों को पट्टमहादेवीजी का आदेश सगकर स्पष्ट बता दिया गया था कि हमेशा सतर्क रहें । उसने कहा था, "रानी लक्ष्मादेवी के स्वभावतः अच्छी होने पर भी उनके कान भरनेवाले चुगलखोर मौजूद हैं। इसलिए बहुत सतर्क होकर उनको बातों पर गौर करना और राजधानी को समाचार पहुंचाती रहना । उसने समाचार पहुंचाने के तौर-तरीकों के बारे में भी बता दिया था। इस सारी व्यवस्था का ब्यौरा रेविमय्या ने पट्टमहादेवीजी को दिया और शान्तिनाथ के मन्दिर-निर्माण के कार्य की स्थिति एवं प्रगति का भी विवरण दिया ! पट्टमहादेवी ने यह सब सुनकर विचार किया कि सातआठ महीनों बाद शान्तिनाथ प्रतिष्ठा-महोत्सव का आयोजन किया जा सकता है।
दोरसमुद्र का जीवन किसी तरह की विशेषता के बिना सामान्य ढंग से चल रहा था। हाँ, युगल शिष-मन्दिर का कार्य तेजी पर था।
उधर मसणय्या के साथ युद्ध ने भयंकर रूप धारण कर लिया था। जब रसद की आमद रुक गयी तो उसके बिना सेना तथा प्रजाजन के प्राण गँवाने से सीधा हमला करना बेहतर समझकर मसणय्या की सेना पोय्सल-सेना पर टूट पड़ी। नदी के उस पार हमला कर देने से पोय्सल सेना पीठ दिखाकर भाग खड़ी होगी, यहीं मसणय्या ने सोचा था; किन्तु उसका यह सोचना गलत साबित हुआ। उल्टे नदी पार करने में उसी को काफी कष्ट उठाना पड़ा। फलस्वरूप उसने यह समझकर कि हानुंगल की रक्षा मुख्य है, अपनी सेना को पीछे हटा लिया। पोसलों ने वरदा नदी पार कर आलूर में अपना पड़ाव डाला। हामुंगल पर कब्जा करने के लिए उनकी सेना आगे बढ़ गया। भयंकर युद्ध हुआ। हामुंगल के किले का पतन हो गया। परन्तु मसणय्या ने दूरदृष्टि से काम लिया। पोरसलों को पहुँचनेवाली सामग्री रोक रखने के इरादे से वह, बंकापुर के मार्ग में जो पोयसल सेना थी, उसको लगभग समाप्त करके बंकापुर जा पहुँचा।" ।
हामुंगल के किले की रक्षा हेतु कुछ सेना को नियुक्त करके, बिट्टिदेव ने मसणाय्या की सेना का पीछा किया। मसणय्या पहले ही बंकापुर पहुंच चुका था, फिर भी पोय्सल सेना का सामना करके बंकापुर को बचा लेने के लिए आवश्यक तैयारी समयाभाव के कारण नहीं कर सका था। कहा जा सकता है कि यह स्थिति पोयसलों की विजय के लिए सहायक सिद्ध हुई। बिट्टिदेव ने सोचा था कि अपनी सेना की सभी टुकड़ियों को एक साथ बंकापुर के पास जुटाकर उस पर हमला किया जाए, वही हुआ। बंकापुर
220 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार