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में शान्तिनाथ स्वामी की नूतन मूर्ति की स्थापना सम्पन्न हुई। पट्टमहादेवी जी के गुरुवय ने, और कुँवर ब्रिट्टियण्णा के गुरुवयों ने उपस्थित रहकर प्रतिष्ठा समारम्भ सम्पन्न किया । मन्दिर के वास्तुशिल्प में जकणाचार्य का अनुकरण नहीं था। वह एक स्वतन्त्र कल्पनापूर्ण प्राचीन वास्तु सम्प्रदाय की शैली में बना था। पट्टमहादेवीजी की इच्छा स्थायी रूप से पूर्ण होती रहे, इसके लिए उस मन्दिर की आय भी शाश्वत रहनी चाहिए, इस वजह से पट्टमहादेवी के गुरुवर्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव के पाटों का प्रक्षालन एवं पूजा समाप्त कर महाराज ब्रिट्टिदेव ने उन्हें इस गन्धवारण बसदि (मन्दिर) के लिए आधारभूत कल्कणि- प्रदेश के मोहेनबिले नामक गाँव को सर्वमान्य के रूप में दान कर दिया। गन्धवारण बसदि की नित्य सेवा के निमित्त महाराज की अनुमति प्राप्त कर गंगसमुद्र के पास की पचास एकड़ उपजाऊ जमीन दान के रूप में पट्टमहादेवी ने गुरुपद पखार कर दे दी।
प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवजी के शिष्य महेन्द्रकीर्ति ने इसी अवसर पर तीन सौ तेरह काँसे की पताका अपनी सेवा में शान्तलदेवी द्वारा निर्मित इस मन्दिर के
लिए दान में दीं।
सारे कार्यकलाप समाप्त होने पर प्रसाद स्वीकार करने के बाद, प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव ने कहा, "पोय्सल प्रभु! प्रिय शिष्या पट्टमहादेवी! इस सेवा में उपस्थित रहकर इस शुभ कार्य में आशीर्वचन कहने के उद्देश्य से हमने इसमें भाग लेने का वचन दिया था, आये भी। अब महाराज और पट्टमहादेवीजी दोनों ने हमें विशेष दायित्व के भार से लाद दिया है। प्रभु का आदेश हैं. हम इनकार कर नहीं सकते। प्रिय शिष्या का स्नेह है, जिसे टाल नहीं सकते, इसलिए हम स्वीकार करते हैं। दोनों में से कोई पहले हमें बता देते तो अच्छा होता। हम संन्यासी हैं। रानी पद्मलदेवीजी से हमने सुना कि इस बसदि का नाम 'सर्वांतगन्धवारण बसदि होगा। यह परिवार से सम्बन्धित लौकिक व्यवहार की बात है। इसमें हमारा सम्मिलित होना या इसमें योग देना सम्भव नहीं । इसलिए यह दान बसदि के नाम पर हमें दिये जाने पर भी यह सब इस बसदि के ही स्वत्व हैं, हमें यह कहना पड़ेगा। मन्दिर के कार्य को सदा चलाते रहना होगा। इसके लिए आय का भी कुछ-न-कुछ मार्ग होना चाहिए। हमें जो दान दिया है उससे जो भी अर्जन होगा, वह सब इस शान्तिनाथ मन्दिर के कार्य-कलापों पर खर्च किया जाए. यही हमारा आग्रह है । हमारे इस आग्रह के अनुसार स्वयं महेन्द्रकीर्तिजी इसका निर्वहण करते रहेंगे। अपने नाम को सार्थक करनेवाली हमारी पट्टमहादेवीजी ने इस शान्तिनाथ स्वामी के मन्दिर को यहाँ प्रतिष्ठित कराया, यह बहुत शुभकारक है। महावीर स्वामी उन्हें और सारे राजपरिवार को आयु. आरोग्य और सुख-सम्पदा दें, यही हमारी उनसे प्रार्थना है। हमारी इस प्रार्थना को हमारे बाहुबली स्वामी अभयहस्त प्रदान कर स्वीकार करेंगे।"
230 ) :: पट्टमहादेवी शान्ताला : भाग चार