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उस शरीर का विधिवत् संस्कार किया गया। जिस श्रद्धा से चेलुवनारायण की प्रतिष्ठा में शामिल हुए थे, उसी श्रद्धा से लोगों ने इस संस्कार में भी भाग लिया। समाधि पर लोगों ने फूल चढ़ाये।
आचार्यजी ने कहा, "आज हमारे भगवान ने मुझे एक महान साक्षात्कार का अनुभव करवा दिया। यह यन्वनकुमारी हमारे धर्म पर विश्वास करने लगी थी, यह एक महान् आश्चर्य का विषय है। इस राजकुमारी की सराहना किये बिना हम रह नहीं सकते। इस कुमारी की जितनी श्रद्धा रही, उससे आधी श्रद्धा भी हम लोगों में होती तो यह संमार कितना सुन्दर हो सकता था ! अन्य धर्मावलम्बी को अपनी ओर आकर्षित कर, भीतर पैट जैसी सा उ पाध्यन्न कर सन्ता हो हो हमारे इस धर्म में महान् सत्य निहित है और वह अन्य सभी से श्रेष्ठ है-इस तरह की भावना भी हमारे मन में कभी-कभी अंकुरित हुई। परन्तु आज'बीवी' कहकर प्रेम पूर्ण आह्वान जो किया वह कितने लोग सुन पाये, सो हमें मालूम नहीं । इस आह्वान के तुरन्त बाद एक प्रखर प्रभा से सारा मन्दिर भर गया! आँखों को चकाचौंध पैदा करनेवाली लगी यह प्रभा! यह कितने लोगों को अनुभूत हुई, विदित नहीं। इससे यह प्रमाणित हो चुका है कि यहाँ का यह चेलुवनारायण सगुण हो विराज रहा है। स्वामी के इस सगुण स्वरूप का झान इस यवनकुमारी ने पाया। उसी सगुण स्वामी में वह तल्लीन हो गयी, यह एक अद्भुत बात है। यहाँ हम इतने लोग एकत्र हुए हैं। परन्तु साक्षात्कार केवल इस यवनकुमारी को ही प्राप्त हुआ। उसका विश्वास और उसकी श्रद्धा हम सभी से बढ़कर है. असीम है। भगवान् भेद रहित हैं। जाति, मत, पन्थ-इनका भगवान् से कोई सम्बन्ध नहीं । सभी मानव समान हैं। अपने विश्वास के अनुसार सायुज्य प्राप्त होता है। यही पट्टमहादेवीजी कहा करती हैं। उस कथन का यह प्रत्यक्ष प्रमाण मिला है। आज यहाँ जो घटना घटो वह विश्व के लिए एक महान् सन्देश के रूप में विश्व मानव की एकता की घोषणा है। हम अपना जन्मस्थान छोड़कर भगवान की प्रेरणा से यहाँ आये । यहाँ से दिल्ली गये, बंग और उत्कल गये। उन्हीं की प्रेरणा से लौटे। गंगा और कावेरी को एक साथ मिलानेवाली अनेक घटनाएँ घटीं। अब हम यहाँ नहीं रह सकते। महाराज और पट्टमहादेवीजी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि दोरसमुद्र के युगल शिवमन्दिरी के पूरा होने तक यहीं रहें। उनके अनुरोध के अनुसार रहने की इच्छा हमारी भी थी। परन्तु इस संस्कार के बाद यहाँ हमारे रहने के लिए अब कोई गुंजायश नहीं। तुरन्त जन्मभूमि की तरफ चल देने की अन्तःप्रेरणा हुई है। हम सदा इस अन्त:प्रेरणा के ही अनुसार चलनेवाले हैं। इस राजघराने ने हम पर अपार गौरव और प्रेम रखा है। यहाँ की जनता ने हम पर अत्यन्त प्रेम बरसाया है। हम अपने जीवन में इस कन्नड़ जनता को, इस यवनकन्या को, इन महाराज और पट्टमहादेवी को कभी भी नहीं भूल सकेंगे। यह राज्य, यह राजघराना, यह जनता सदा सुखी और सम्पन्न रहे, यही चेलुवनारायण
234 :: पट्टमहादेवी शान्तना : भाग चार