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पर हमले की सम्भावना नहीं थी, इसलिए वहाँ का भण्डार जल्दी ही समाप्त हो गया। मसणय्या की सेना काफी बड़ी मानी जाती थी, फिर भी वह पोय्सलों का सामना नहीं कर सकी । यद्यपि उन्होंने साहस के साथ युद्ध कर स्वामिनिष्ठा दिखायी, तो भी भाग्य पोयसलों के पक्ष में रहा । यह देख मसणय्या छिप गया। इससे विक्रमादित्य की तरफ से उसकी मदद के लिए जो आये थे वह सब हार गये और पोय्सलों की जीत हुई।
बिट्टिदेव तुरन्त राजधानी की तरफ चलना नहीं चाहते थे। वहीं विक्रमादित्य के प्रधान निवास में रानी बम्मलदेवी और राजलदेवी के साथ कुछ समय तक विश्राम करने का निर्णय किया और विजय का समाचार हरकारों द्वारा राजधानी दोरसमुद्र को भिजवा दिया। इधर पट्टमहादेवी के पास अलग से एक पत्र भेजा। उसमें शान्तिनाथ मन्दिर की नौवस्थापना के बाद प्रेषित समाचार के विषय में अपना सन्तोष व्यक्त किया था और प्रतिष्ठा-समारोह के अवसर पर उपस्थित होने की सूचना दी थी। साथ ही, तब तक बंकापुर ही में रहने से मन को आवश्यक शान्ति प्राप्त होने की बात भी कही थी। और यह भी बताया था कि वहीं रहने से चालुक्य पुनः हमला नहीं कर सकेंगे। शान्तलदेवी को लगा कि सब अच्छा ही हुआ।
उधर युद्धस्थल से और इधर महाराज से विजय-वार्ता के मिलने के दूसरे ही दिन, पनसोगे के द्रोहाभरट्ट निमाल के महाप्रोकर इन्द्रनील पट्टा दिन से मिले। प्रसाद देते हुए उन्होंने निवेदन किया कि रानी लक्ष्मीदेवी का दर्शन कर प्रसाद देने यादवपुरी होते हुए यहाँ आने की सोचकर, पहले वहाँ गये थे। उधर जाने पर शुभ समाचार मिला कि दो दिन पूर्व ही रानी लक्ष्मीदेवी ने पुत्र को जन्म दिया है। पट्टमहादेवीजी ने यह शुभ समाचार सुनते ही विशेष. गौरव के साथ राजमहल की तरफ से इन्द्रजी को पुरस्कृत किया। फिर इधर-उधर की बातें होने लगी।
"इस शुभ समाचार को महासन्निधान के पास पहुंचा देने का आदेश रानोजी ने दिया है। उन्हें मालूम नहीं कि सन्निधान कहाँ हैं । यहाँ पता लगाकर आगे बढ़ने का विचार है। हम महासन्निधान का सन्दर्शन कहाँ कर सकेंगे?" इन्द्रजी ने पूछा।
"वैसे तो यहीं उनका सन्दर्शन किया जा सकता था, लेकिन हमेशा की तरह महासन्निधान युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद राजधानी नहीं लौट रहे हैं। अभी बंकापुर ही में रहने की जरूरत बताकर, सन्देशवाहक के द्वारा खबर भेजी है।" शान्तलदेवी ने कहा।
"किस दिन विजय प्राप्त हुई, जान सकते हैं?" इन्द्रजी ने पूछा। "जरूर आज पूर्णिमा है न?...तीज के दिन विजय पायो थी।"
"तो उसी दिन सन्निधान का पुत्र जन्मा है। तीज के ही दिन पुत्र-जन्म हुआ। उसी दिन जोत भी मिली। जैसा हमने कहा, यह शुभ--सूचना ही है। आज्ञा हो तो
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 221