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आदेश दिया है। इससे अधिक और कुछ मैं भी नहीं जानता।"
आचार्यजी के मन में जो शंकाएँ उत्पन्न हुई थी उन्हें स्वयं उन्होंने बताया और यह कहा कि "उनकी तरफ के लोगों से यदि पट्टमहादेवी और महाराज को किसी तरह का मानसिक दुःख पहुँचा हो तो वह स्वयं से ही हुआ मानकर उसके लिए प्रायश्चित्त करेंगे। उन्हें आश्रय देनेवाले राजदम्पती के वे हितचिन्तक हैं। इसलिए वस्तुस्थिति का ज्ञान हो जाए तो पता चलेगा कि क्या करना चाहिए । इसलिए किसी बात को संकोचवश मन में न रखें।"
रेविमय्या ने फिर भी कुछ नहीं कहा, मात्र इतना कि "आचार्यजी के मन में जो भी शंका उत्पन्न हुई है, उसका निवारण केवल पट्टमहादेवीजी द्वारा ही हो सकता है." कहकर रेविमय्या किसी तरह फँसे बिना खिसक गया।
व्यवस्था के अनुसार रानी लक्ष्मीदेवी की यात्रा आरम्भ हुई। यादवपुरी में वह जितने दिन रही, उसी बीच वहिपुष्करिणी पर जो व्यवस्था करनी थी, उसे सम्पन कर रेविभय्या रानी को वहाँ ले गया।
इधर शान्तलदेवी रानी पद्यलदेवी और उनकी बहनों को साथ लेकर बेलुगोल की ओर चल पड़ी। पहले ही वहाँ खबर पहुँचा दी गयी थी। खासकर पट्टमहादेवी द्वारा कटवप्र पर शान्तिनाथ भगवान् के मन्दिर की शंकुस्थापना करने की बात भी लोगों को मालूम हो चुकी थी, इसलिए इर्दगिर्द के प्रदेशों से सभी जैन बन्धु बेलुगोल में इकट्ठे हो गये थे। इसी समय बाहुबली स्वामी के महामस्तकाधिक की व्यवस्था करने की सूचना धर्मगुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव श्रीपाल वैद्य, शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव, भानुकीर्ति पण्डित और गुणचन्द्र सिद्धान्तदेव, इन सभी ने विचार-विमर्श करके दी थी। वह व्यवस्था भी उसी प्रकार हुई थी।
जिन भक्ताग्नेप्सर गंगराज, उनके बेटे दण्डनायक एचम ने इस सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली थी। शान्तलदेवी के माता-पिता भी बेटी के साथ बेलुगोल आये थे। रेविमय्या, जिसका रहना अत्यन्त आवश्यक था, नहीं आ सका था। चट्टलदेवी और मायण तो साथ थे ही।
बेलुगोल में इधर अनेक वर्षों से इतनी भीड़... भाड़ नहीं हुई थी। अगर महामस्तकाभिषेक की बात फैल भी जाती तो देशभर के लोगों से बेलुगोल भर जाता और व्यवस्था संभालना कठिन हो जाता।
नव विवाहित दण्डनायक मरियाने और भरत और उनकी पत्नियों का इन कार्यों में विशेष उत्साह था। पट्टमहादेवो के बच्चे, बिट्टियण्णा, उसकी पत्नी आदि सब आत्मीय जन भी वहाँ एकत्र हुए थे। कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न भो उठे बिना न रहा कि जब सन्निधान युद्ध क्षेत्र में हैं तब मन्दिर की शंकुस्थापना की क्या जल्दी थी।
इस तरह के प्रश्न का ठीक उत्तर दे कौन ? शान्तलदेवी ने ही उत्तर दिया,
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 213