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मुझे अब याद आ रहा है।'
" वे स्वभावतः आसानी से विचलित होनेवाली नहीं, यह सच हैं। फिर भी यदि एक रानी कष्ट देने लगे तो वे भी विचलित हो सकती हैं। यह शादी न हुई होती तो अच्छा था ! अब तो ऐसा ही प्रतीत होता है।"
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'आगे कदम बढ़ा दिया तो अब पीछे हटा नहीं सकते। चाहे समस्या कितनी ही उलझी हां, महाराज बड़ी धीरता से उसे सुलझा देंगे।"
"सुलझा तो सकते हैं। परन्तु पट्टमहादेवी की पवित्र आत्मा को दुख पहुँचाने वाली बातें ये मूर्ख लोग कहने लगेंगे, इसका भय हैं।"
" वह जानती हैं कि ये अज्ञानी हैं। इससे वह विचलित नहीं होंगी। फिर भी यही कहना पड़ता है कि तुमने रानी एवं दास की बातचीत के ढंग पर ध्यान नहीं दिया। रानौ चाहती है कि वह पुत्र को हो जन्म दे और पोथ्सल सिंहासन पर श्रीवैष्णव ही बैठे। इसका तात्पर्य क्या है ? दास चाहता है कि वह राजा का नाना कहलाए। इस राज्य की स्थापना में, इसे विस्तार देने में, एक मानवीय और सांस्कृतिक और वास्तविक धर्म के मूल्यों को रूपित करने में पट्टमहादेवी की भूमिका कितनी महान् है, इसे दुनिया जानती है। इनके अलाव, पट्टमहादेवी पुत्र की ही सिंहासन का उत्तराधिकार मिलना चाहिए, किसी और को नहीं। ऐसी स्थिति में इस दास ने रानी के मन में, सो भी जब वह गर्भवती है, असंगत और न्यायविरुद्ध महत्त्वाकांक्षाओं को भर दिया है। इसका परिणाम क्या होगा, समझते हो ?... ऐसा नहीं होना चाहिए। ऐसा नहीं होने देना चाहिए।"
'आचार्यजी साफ-साफ यही बात कह देते तो अच्छा होता न?"
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'इस तरह के स्वभाव वाले लोग बातों का दूसरा ही अर्थ लगाते हैं। कहने पर भी कोई असर नहीं होता। जिसे ठीक करना होगा उसे ठीक समझा देना है। इसलिए राजधानी लौटने से पहले एक बार यहाँ आने के लिए रेविमय्या से कह दो।"
समय पाकर एम्बार ने रेवमय्या को श्री आचार्यजी का सन्देश सुनाया। रेविमय्या ने कहा, "मैं कब लौटूंगा. मी मँ स्वयं ही नहीं जानता। अगर मैं अकेला ही लौहूँगा तो अवश्य ही आचार्यजी के दर्शन करके जाऊँगा।"
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यह समाचार सुनकर आचार्यजी को कुछ सान्त्वना मिली। वस्तुस्थिति की पूरीपूरी जानकारी पट्टमहादेवी को हैं, इसीलिए रानी के साथ रेविमय्या को भेजा है। फिर भी क्या सब हुआ होगा यह जानने की इच्छा हुई, इसलिए आचार्यजी ने एम्बार से फिर कहा. "रेविमय्या को चलने के पूर्व एक बार यहाँ आने के लिए कह आओ !"
रेविमय्या आया । परन्तु उससे आचार्यजी को कोई समाचार मालूम नहीं हो सका। उसने सिर्फ इतना ही कहा, "सदा रानी के साथ रहना, उनकी सभी सुविधाओं का खयाल रखना, उनकी सुख शान्ति की सब तरह से व्यवस्था कर देनी होगी - यही
212 : पट्टमहादेवी शान्तला भाग नार