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इसके अलावा, उनकी पत्नी लक्कलदेवीजी का स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है, और फिलहाल में मातृ-बियोग भी हुआ है। अतः वे दोरसमुद्र में ही रहेंगे, " यह भी निर्णय हुआ ।
यह भी निर्णय लिया गया कि महाराज के साथ मंचियरस, माचण दण्डनाथ बिट्टियण्णा, चामय दण्डनाथ जाएँगे। रानी बम्मलदेवी तो महाराज के साथ होंगी ही, अबकी बार राजलदेवी को भी साथ ले जाएँगी। करीब दो साल तक युद्ध के इन झंझटों से दूर रहकर राज्य निश्शंक था, अब फिर आपद् आ गयी। मरियाने और भरत भी युद्ध में जाने के लिए थे। इस उन्हें रोक दिया गया। उदयादित्य तो पूर्वी सीमा की निगरानी करते ही रहे और वहाँ के हालात से वह खूब परिचित भी थे, इसलिए निश्चय हुआ कि उन्हें वहीं रहने दिया जाए।
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पोरसलों के लिए युद्ध कोई नयी बात नहीं थी। रानी लक्ष्मीदेवी के लिए भी यह area में कोई नयी बात नहीं थी। परन्तु उसकी अभिलाषा थी कि अब जब वह गर्भवती हैं, महाराज साथ रहें तो ठीक होगा। पहले जब आसन्दी जाने का कार्यक्रम बना था तब कुछ उपाय करने का उसका विचार था। अब यह युद्ध की बात उठी है, यो सब सोचकर उसने विचार किया कि अपने पिता से सलाह कर ली जाए। उसके पिता ने कह दिया, "मैं इसके लिए क्या करूँ ? कर भी क्या सकता हूँ? इस राजमहल की सर्वाधिकारिणो तो वह पट्टमहादेवी है। उसी से प्रार्थना कर ले।" उसके कहने के ढंग से मालूम पड़ता था कि वह भेदभाव डालने के प्रयोजन से उसका दिल चुभो रहा
है ।
" मैं भी रानी हूँ। महाराज से पूछ लूँगी। किसी दूसरे से क्यों पूछूं ?" लक्ष्मी देवी ने कहा ।
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"ठीक बात है। दूसरे किसी से क्यों पूछो ? महाराज से ही पूछ लो ।" तिस्वरंगदास ने कहा ।
उसने वैसा ही किया । " अब कुछ भी परिवर्तन नहीं हो सकता। जब तुमने रानी बनना चाह्य तभी तुमको यह सब जानना चाहिए था और इन सबके लिए तैयार रहना था ।" बिट्टिदेव ने स्पष्ट किया।
"पिछले युद्ध के समय मैंने कोई बात की ? चुप रही तो रही न!"
"इस बार भी ऐसा ही क्यों नहीं कर रही हो ?"
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'आप ही ने मुझे ऐसा रहने नहीं दिया । "
64 मैंने ?"
""नहीं तो और किसने? क्या आप नहीं जानते कि अब मैं क्या हूँ ?"
'मालूम है। तुम मेरी चौथी रानी हो। "
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186 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार