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किया न? उस रानी से कहो कि मेरा भी मायका है। उसने समझा होगा कि उस अकेली
का ही है। चलो, इनसे हमें क्या सरोकार?' कहकर उद्यान के दरवाजे की ओर चल दिया। लक्ष्मीदेवी ने उसका अनुसरण किया।
"चट्टला, हमने सोचा कुछ था और हुआ कुछ और।" पद्यलदेवी ने कहा।
"कुछ भी करें, कुत्ते की पूँछ तो टेढ़ी की टेढ़ी रहेगी। आप शान्त रहें। आप कोई बात न छेड़ें। अपनी बहनों से भी कुछ न कहें।"
"तुझ बेचारी को भी गालियां पड़ी!"
"गालियाँ तो मेरे लिए नयी नहीं। बहुत सुन चुकी हूँ। गालियाँ मुझे लगती ही नहीं। सुन सुनकर यह चमड़ी मोटी हो गयी है। चलिए, बेचारो वे प्रतीक्षा करती हुई परेशान हो गयी होंगी।" चट्टल ने कहा।
दोनों पुष्पवाटिका की तरफ जाने लगीं । केलिगृह के पोड़ पर रेविमय्या, पट्टमहादेवी, चामलदेवी तथा बोप्पिदेवी सामने आये।
पद्मलदेवी ने चकित होकर देखा।
"लित होने की जरूरत है कि हो की की आवश्यकता नहीं। मैं आदि से अन्त तक सभी बातें जानती हूँ। यदि बाप बेटी जाना चाहें तो मैं रोकूँगी नहीं। उनकी ऐसी मानसिक स्थिति में मेरा निःश्वाप्स भी उन्हें जहर-सा लगेगा। आप बड़ी हैं । जो सद्भावना मेरे लिए आपके मन में है, उसके लिए मैं कृतज्ञ हूँ।"
"हमारी सद्भावना रहने दें, अब क्या कहती हैं ? उसी दिन मैंने कहा था-हम बहनें सौतों की तरह व्यवहार करने लगी थीं। लेकिन बाद को अकल आयी तो फिर बहनें बन गयीं। परन्तु इस तरह की अल जलूल कार्रवाई के पीछे यह सौतिया डाह बढ़ती ही जाएगी, इसलिए इसकी दवा करनी ही होगी।"
"मैंने पहले ही वचन दिया है । सन्निधान को भी मैंने सूचित कर दिया है। कोई भी मुझसे द्वेष करे तो उन सबको मानसिक शान्ति प्रदान करने के लिए कटवप्र पर, जहाँ रेविमय्या को बाहुबली का साक्षात्कार हुआ था, शान्तिनाथ स्वामी के मन्दिर का निर्माण कराऊँगी। मैं अपने गुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवजी से प्रार्थना करूंगी कि वे उसका शिलान्यास करें।"
पद्मलदेवी ने कहा, "यही शान्तिनाथ स्वामी का मन्दिर, 'सवतिगन्धवारणा वसदि' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त करेगा।''
"तो शंकुस्थापना कब है?" चामलदेवी ने पूछा। "पहले प्रतीक्षा करेंगे कि वे क्या करती हैं। बाद को निश्चय करेंगी।"
पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार :: 199