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" तब तक तो हम नहीं रह सकेंगी!" चामलदेवी ने कहा।
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'क्यों? शंकुस्थापना के बाद ही होगी आपकी यात्रा ।" शान्तलदेवी ने कहा । 'छोटी रानी की बात सुनने के बाद भी यहाँ रहना ?" पद्मलदेवी ने कहा ।
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+4 आप ही ने उसे जवाब दिया है न ? यह राजमहल पहले आपका था। बाद मैं हमारे अधीन आया। जब तक यह हमारे अधीन है, तब तक यह आपका ही है न?" शान्तलदेवी ने कहा ।
"इसे अपने अधीन स्थायी रूप से रखना हो तो आपकी सन्तान के मार्ग में कोई किसी तरह का रोड़ा न बने, इस ओर ध्यान देना होगा। मेरी इस बात को किसी भी कारण से उपेक्षा योग्य न समझें। छोटी रानी का मन अच्छा है। उसके पिता का मन अच्छा नहीं, यही भावना अब तक थी। परन्तु अब रानी का मन भी पूरी तरह से कलुषित हो गया है, इसलिए सब तरह से सतर्क रहना होगा। "
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'मुझे अपनी सन्तान के विषय में कोई चिन्ता नहीं। रेविभय्या, छोटे बालकेनायक, उनके बेटे नोणवेनायक, माचेयनायक जैसे विश्वासपात्र व्यक्ति जब हैं उन्हें किसी भी बात की कमी न होगी। इसके साथ यह भी है कि इस पोय्सल वंश की रक्षा का दायित्व अपने घराने के हाथ में है। हमने अपनी बेटी को भी आपकी अभिलाषा के अनुसार, आप ही के घराने में ब्याह दिया है। वह अब सुरक्षित है। चिन्ता न करें।"
रेविमय्या इन लोगों की ओर पीठ करके खड़ा आँखें पोंछता रहा ।
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"क्या हुआ, रेबिमय्या ?" चामलदेवी ने पूछा।
वह ज्यों-का-त्यों खड़ा रहा, इनकी ओर नहीं मुड़ा। बोला, "इस तरह दूध में खटाई देने वाले लोगों की सृष्टि नहीं करता तो उस भगवान् का क्या बिगड़ जाता ? मैं केवल नौकर होकर पैदा हुआ। मालिक होकर जनमता तो ऐसे लोगों के अस्तित्व को मिटा देता।"
पद्यलदेवी को आश्चर्य हुआ। रेविमय्या के मुँह से कभी ऐसी बात उन्होंने सुनी ही नहीं थी। वह बोलता कम था। ऐसा व्यक्ति यदि इस तरह बोले तो उसका हृदय कितना विचलित हो गया होगा, उन्होंने सोचा ।
" अपने मन को शान्त कर लो, रेविमग्या। कल यदि वे रवाना होंगे तो तुमको ही उन्हें पहुँचाने की लिए जाना होगा। इतना ही नहीं, वे जहाँ भी रहें, उन्हें सभी सुविधाएँ देनी होंगी और उनकी सुरक्षा की व्यवस्था भी कर देनी होगी। " शान्तलदेवी ने कहा ।
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अब तक तो मैंने किसी आदेश को टाला नहीं।" इधर मुड़कर रेविमय्या बोला। उसके कहने के ढंग से मालूम होता था कि उसके दिल में दर्द हैं, और यह भी लगा कि मन में कोई निश्चय है।
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200 पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार