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एक तरफ वनवासी और दूसरी ओर किसुवोल्लु के रास्ते से रसद आदि प्राप्त होने का पता लगा। इन दोनों मार्गों से रसद के आमद को रोकने के लिए पोयसल सेना की कुछ टुकड़ियों को अलग कर, दोनों जगह भेज दिया गया। इस काम के लिए प्रधान तथा अश्वसेना का ही इस्तेमाल किया गया। अश्वसेना का अधिकांश भाग दो जगह विभक्त करने के कारण और सैनिकों को भरतो करना पड़ा। यह खबर दोरसमुद्र पहुंचायी गयी। राजधानी की सुरक्षा के लिए नियुक्त आरक्षित सेना को तुरन्त बोपदेव के नेतृत्व में भेज दिया गया। बदले में यादवपुरी से थोही सेना राजधानी बलवा ली गयी।
युद्ध की गतिविधियाँ यथावत् चल रही थीं। इधर कार्य भी हो रहे थे। शिव मन्दिर का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा था। इस बीच में वृषभ-निर्माण के लिए बड़े पत्थरों की प्राप्ति की समस्या उठ खड़ी हुई। पत्थर भी मिल गये थे, लेकिन शिल्प के लिए उपयुक्त बृहत् शिलाखण्डों को कोनेहल्ली से, जो ऐसे शिलाखण्डों का आगार था, मँगवाया गया था। अपनी कई चिन्ताओं, कई अड़चनों के होते हुए भी, शान्तलदेवी ने मन्दिर निर्माण के कार्य की निगरानी में किसी तरह की ढील नहीं दी।
केलिगह की टक्कर के बाद तिस्वरंगदास ने लक्ष्योदेवी को एक सलाह दी थी। कहा था कि "जो हुआ, सो हो गया। अब तुम स्वयं कोई बात न छेडो। देखें, रानी पद्मलदेवी शिकायत करके पट्टमहादेवी को उकसाती हैं या नहीं।" ।
एक सप्ताह गुजर गया, फिर भी किसी ने उस बारे में जूं तक न की। वास्तव में उस दिन जब पद्मनदेवी और चट्टला से सामना हुआ तो तिरुवरंगदास भयभीत अवश्य हुआ। अपनी और रानी लक्ष्मीदेवी की आज्ञा का पालन न करने पर पहरेदारों पर गुस्सा भी आया था। तहकीकात करने पर मालूम पड़ा कि वे कैसी दुविधा में पड़ गये थे, तब कहीं उन पर का गुस्सा शान्त हुआ था। पर मन में भय बना ही रहा। फिर भी उसकी बेटी ने जो झूठ कहा था उससे धीरज बँधा रहा। वह धीरज एक तरह की सन्दिम्ध स्थिति का था। यह उसे मालम था कि पद्रमहादेवीजी किसकी बात पर विश्वास करेंगी। फिर भी उसकी बेटी की झूठी बात ने इस प्रसंग में उसके आगे के कार्य के लिए प्रोत्साहन दिया था। अब उसे यह बात जम गयी थी कि उसकी बेटी उसकी पकड़ में हैं, इसलिए उसने उसको ऐसी सलाह दी थी। परन्तु राजमहल में किसी ने भी इस बात को छेडा न था।
तिरुवरंगदास को लगा कि उसका वह निर्णय गलत है। उसने कहा, "देखो बेटी! कितना अहंकार है ! उन लोगों की इस लापरवाही का कोई उद्देश्य है। सभी बातों का तुरन्त निर्णय करने वाली पट्टमहादेवी, इस विषय में मौन क्यों है? इस बात को छेड़ें तो हम यहाँ से चले जाएंगे। तब भी उसका वह दुष्ट इरादा पूरा न होगा। तुम्हारी सन्तान बच जाएगी, उसको यही डर है। यदि जाने दें तो शायद सन्निधान गुस्सा भी करें, यह भी उसको शक है। शायद इसीलिए वह मौन है।"
202 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार