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बाकी सब मैं देख लूँगा। चलो, चलेंगे। बहुत देर हो गयी। अच्छा हुआ कोई आया नहीं।"
__इतना सुनने के बाद पद्मलदेवी ने कहा, "चट्टला, अब हम दोनों उनके सामने प्रकट हो जाएँ। उनमें यह शंका उत्पन्न हो जाए कि हमने उनकी बातें सुन ली हैं 1 इससे सम्भव है कि उनके ऐसे बुरे विचारों पर कुछ रोक लग जाए। यह कैसा दोषारोपण है! ऐसे ही घातक व्यक्तियों से दुनिया बरबाद होती है।"
"हाँ, यह तो उन्हें मालूम होगा ही कि हम अन्दर आ गयी हैं।"चट्टला ने कहा।
जैसे उद्यान की सैर करने आयी हों, दोनों घूमते-घूमते पिता-पुत्री के सामने हो गयीं।
पद्मलदेवी ने कहा, "द्वार पर नौकरानी ने कहा-रानीजी हैं। अब इस शुद्ध हवा का सेवन आपके लिए अच्छा है । पट्टमहादेवीजी कहती हैं कि सूर्योदय से पहले ऐसी हवा में टहलना गर्भिणियों के लिए लाभदायक है। यह उद्यान अब हमारे समय से भी अधिक सुन्दर बन गया है।"
अचानक और अनपेक्षित के आगमन से उन दोनों के मन के भाव चेहरे पर व्यक्त हो गये। भाओं को छिपाने की कोशिश करने पर भी वे चट्टला और पद्मलदेवी की दृष्टि को धोखा नहीं दे सके।
लक्ष्मीदेवी जल्दी ही चेत गयो औ. कोसी हाँ, पहले का मासे नो मुले मालूम नहीं। इस समय तो बहुत सुन्दर है। जैसा आपने कहा, मुझ जैसों के लिए यह केवल स्वास्थ्यवर्धक ही नहीं, मन को प्रसन्न करने वाला भी है। इसे देखने के बाद मेरे मन में विचार हो रहा है कि यादवपुरी में ऐसा उद्यान पट्टमहादेवी ने क्यों नहीं बनवाया?"
"यादवपुरी दोरसमुद्र जैसी प्रमुख नगरी नहीं है। वास्तव में सोसेफर को छोड़ने के बाद दोरसमुद्र ही प्रधान राजधानी बना। वेलापुरी भी सीमित अर्थ में राजधानी है। अब चेन्नकेशव मन्दिर के निर्माण के बाद उसे भी महत्त्व मिल गया है। परन्तु यहाँ युगल-शिवालय बन जाएगा तो इसका आकर्षण और भी बढ़ जाएगा, लगता है।"
"हाँ, सिवा सन्निधान के कोई और विष्णुभक्त है नहीं। वैष्णवों को चिराने के ही लिए इस शिव मन्दिर का निर्माण किया जा रहा है।"
"वैष्णव शिव-मन्दिर के बारे में ऐसी भावना क्यों रखते हैं ? हम जैन हैं। हमें वो आपके इस वैष्णव-मन्दिर पर कोई क्रोध नहीं!"
''वह केवल ऊपरी बात है, दिखावा है। उस असन्तोष का हो फल है यह शिवालय, क्या मैं इतना भी नहीं समझती?''
"सनीजी को इस विषय में अपनी राय बदलनी पड़ेगी।"
196 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग नार