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उन्होंने कहा, "दोनों गर्भगृह तैयार हो गये हैं। चाहे जब प्रतिष्ठा की जा सकती है। शेष कार्य धीरे-धीरे होता रहेगा। परन्तु सन्निधान को इसकी सूचना देनी होगी न ?" "सन्निधान के पास खबर भेज दूँगी। निकट के शुभ मुहूर्त में ईश्वर-प्रतिष्ठा की तैयारियाँ हों।" शान्तलदेवी ने आदेश दिया।
जो हरकारा महाराज के पास समाचार ले गया था, उसने तीन दिनों के भीतर ही वापस आकर महाराज का आदेश सुनाया, "शास्त्रोक्त रीति से हमारी अनुपस्थिति में प्रतिष्ठा कार्य सम्पन्न हो जाए। पूजा-विधि एक तरफ चलती रहे। दूसरी तरफ निर्माण का कार्य भी होता रहे। अभी यह प्रतिष्ठा कार्य सादे रूप से सम्पन्न हो । केतमल्ल की इच्छा होगी तो सारा काम पूरा हो जाने पर, बड़े पैमाने पर उत्सव का आयोजन करेंगे।"
किसी धूम-धाम के बिना केतमल्लजी की माताजी केलेयब्वे की मानसिक शान्ति के लिए दोनों गर्भगृहों में शिव प्रतिष्ठा कार्य शार्वरि संवत्सर उत्तरायण संक्रमण के दिन सम्पन्न किया गया। शिवार्चनादि के लिए महाराज के नाम पर दान आदि भी दिये गये।
प्रतिष्ठा-समारम्भ के समय केलेयव्वे बहुत मुश्किल से मन्दिर आ सर्की । वैद्यजी ने मना किया था, तो भी इस उत्सव में वे आयी थीं। सम्पूर्ण समारम्भ को उन्होंने देखा । चरणामृत एवं प्रसाद ग्रहण के बाद ही वे घर गर्यो । पालकी में ही आय और गर्यो तो भी बहुत देर तक बैठे रहने के कारण थकावट हो सकती है, यही सोचकर वैद्यजी कुछ पेय तैयार कर रखा था। इस पेय से उन्हें बहुत आराम मिला। दूसरे दिन से उनका स्वास्थ्य सुधरता चला गया।
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महादेव की कृपा से उन्हें तृप्ति प्राप्त हुई। इस परिवर्तन को देख दूसरे लोग भी सन्तुष्ट हुए। मन्दिर का निर्माण कार्य और अधिक उत्साह से आगे बढ़ा।
इतने में मरियाने और भरत का विवाह निकट आ गया। राज्य के सभी प्रमुखों के पास निमन्त्रण-पत्र भेज दिये गये। अभी एक पखवाड़े की अवधि थी। महाराज रानी लक्ष्मीदेवी के साथ वेलापुरी आये। मुहूर्त का निश्चय मण्डूकोदर चेन्नकेशन के ही सान्निध्य में हुआ था, इसलिए विवाह को भी वहीं से सम्पन्न करने का निर्णय लिया गया था। बेलापुरी में उस दिन फिर से जन-समूह उमड़ पड़ा। एक नयी शोभा से वेलापुरी जगमगा उठी था। शुभ मुहूर्त में डाकरस के बड़े बेटे मरियाने का जक्कणब्वे से तथा छोटे पुत्र भरत का कंचीविजेता विष्णुवर्धन की पुत्री हरियलदेवी से विवाह सम्पन्न हुआ। डाकरस के घराने के गुरु गण्डविमुक्तदेवजी ने उपस्थित रहकर वरधू को आशीर्वाद दिया। इसी शुभ वेला में ब्रिट्टिदेव ने यह निर्णय किया कि दोनों भाई दण्डनायक पद पर दोरसमुद्र में प्रधान गंगराज के पास रहकर कार्य करेंगे।
इसी प्रसंग में यह शुभ वार्ता प्रकट हुई कि रानी लक्ष्मीदेवी ने गर्भ धारण किया
184 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार