________________
शीतयुद्ध होने के कारण खर्च हो खर्च होता रहा। आय का कोई मार्ग ही नहीं था। फिर भी तीन तरफ से युद्ध होने के कारण एकत्रित सामन्त- सेना ने अपने शिविरस्थान को सुरक्षित न समझकर, कुछ पीछे की ओर जाकर वहाँ मुकाम किया। प्राप्त समाचार के अनुसार, इन सामन्तों में से पाण्ड्य और कदम्ब बहुत दूर तक पीछे हट चले थे। पाण्ड्य अपने अधीन राजधानी उच्चंगी के पास और कदम्ब हार्मूगल को वापस लौट चले थे। गंगराज ने जो खबर फैला दी थी वही इसका कारण था। उन्होंने खबर फैला दी थी कि 'पोयसल सेना सीधे उच्चंगी और गोवा पर हमला करेगी। गोत्रा पर हमला करने दण्डनाथ रायण और चामय के नेतृत्व में वरदा नदी की तरफ से सेना चल चुकी है, और उच्चंगी पर स्वयं महाराज बिद्रिदेव ही सीधा हमला करेंगे और उनकी मदद के लिए हाथी, घोड़े और पैदल सेना भारी संख्या में साथ गयी है।' फलस्वरूप सम्मिलित सेना के तीन मुख्य भागों में विभ६झेकर पाई व लो.. जाने के कारण, गंगराज को जिसका सामना करना था, उसकी शक्ति क्षीण हो गयी। राजधानी से जो मदद चाही थी, सो उसकी प्रतीक्षा में दिन गजरते रहे। उधर डाकरस, मात्रण और उदयादित्य, इनके साथ स्वयं बिट्टिदेव ने कोषलालपुर और नंगली को अपने अधिकार में कर लिया। आगे कैची को कब्जे में करके मूल पाण्ड्यों की मधुरा तक आगे बढ़े जाने की योजना बनायी । इसके लिए माचण के साथ कुछ सेना को नंगली में ही रखा। उधर तलकाडु, उधर कोवलालपुर उनके कब्जे में हो जाने के बाद, चोलों के वंश में जो गंगवाड़ी रही, वह उनसे छूटकर पोयसल राज्य में सम्मिलित हो गयी। कोवलालपुर में उदयादित्य को रखकर, संगृहीत निधि-निक्षेप साथ लेकर विट्टिदेव डाकरस के साथ राजधानी लौट आये। उस समय पट्टमहादेवी यादवपुरी गयी हुई थीं। सचिव मादिराज से सारी बातें मालूम हुई। कुल मिलाकर परिस्थिति की जानकारी मिल जाने पर उन्हें एक तरह से सन्तोष ही हुआ। दो दिन आराम से समय बिताया।
रानी राजलदेवी को उस समय महाराज के साथ एकान्त सुख मिला उसने उस समय भरत-हरियला के विवाह के बारे में भी जो बातें चली थीं, उन्हें विस्तार से बतायीं।
डाकरस को भी एचियक्का से ये बातें विस्तारपूर्वक मालूम हुई। वे भी सहमत हो गये। यदि राजकुमारी अपनी बहू बनेगी तो कौन खुश न होगा?
बिट्टिदेव ने कहा, "यह सारा युद्ध सम्बन्धी कार्यकलाप एक बार समाप्त हो जाए; फिर इन बातों पर विचार करेंगे!"
पद्मलदेवी को जब यह मालूम हो गया कि बिट्टिदेव सभी बातों से परिचित हो गये हैं तो वह और चामलदेवी दोनों ने महाराज के समक्ष निवेदन किया।
"अब इस राज-परिवार के लिए आप ही बड़ी हैं। आपको बातों को पट्टमहादेवीजी, कभी नहीं टालेंगी। हम फिर युद्ध-क्षेत्र से लौट आने के बाद, पट्टमहादेवी और उनके
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 71