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"शायद उन्हें भी मालूम नहीं होगा।' "सुना है कि सचिव नागिदेवण्णाजी उनको बताकर ही यदुगिरि गये थे।" "ऐसा? तब तो पिताजी को चाहिए था कि वह मुझे भी बता देते !"
"बेचारे, काम-काज की गड़बड़ो में शायद नहीं बता सके हों। या ऐसा भी हो सकता है कि यह बात तुम्हें बताना उतना जरूरी न समझे हों।"
"मेरे पिताजी भूलने ज्यादा लगे हैं।" पिताजी के इस भूलने की आदत को कारण समझने पर भी उसके मन में एक बेचैनी बनी रही।
"हो सकता है। बेचारे वृद्ध हो चले हैं। कल सुबह एक सभा बुलाने की बात सचिव नागिदेवग्गा ने सोची है। आचार्यजी सम्भवतः एक पास के अन्दर-अन्दर पधारने वाले हैं। उनके लौटने तक यहाँ क्या सब तैयारियां करनी होंगी, इन सब बातों पर विचार-विमर्श करना है।" ___ "इसके लिए इतनी दृर मे आपको आने का कष्ट करना पड़ा, सचिव और हम सब मिलकर निर्णय कर सकते थे न?"
"तुम स्वयं उपस्थित रहकर निर्णय करो तो वह एक तरह से ठीक है। परन्त तुम्हारे पीठ-पोछे कुछ निर्णय हो, और वह तुम्हारा ही निर्णय कहकर प्रचारित हो तो मुश्किल होगी। अभी तुम्हें अनुभव कम है। तुम्हारे नाम पर कुछ कलंक नहीं लगना चाहिए। तुम अब पोय्सल रानी हो। इसलिए मेरा आना अनिवार्य हो गया। सन्निधान युद्ध-क्षेत्र में गये हैं। उनकी अनुपस्थिति में राजधानियों के सभी कार्य अबाध गति से चलने चाहिए। आचार्यजो के प्रति सन्निधान को कितनी भक्ति और श्रद्धा है, यह तो तुमको बताने की जरूरत नहीं। तुम जानती ही हो।"
"तो पट्टमहादेवीजी के मन में यह शंका उत्पन्न हो गयी है कि मेरे पीठ-पीछे भी निर्णय लिये जाने की सम्भावना है?"
"सवाल शंका का नहीं, यह सतर्क रहने की बात है। आगे चलकर तुम समझ जाओगी।"
"सभा दोपहर को बुलवा सकते थे न? आप यात्रा के कारण थकी हैं, आराम कर लेती तो अच्छा था!" लक्ष्मीदेवी ने कहा।
मुझे इतनी थकान नहीं। थोड़ी-बहुत थकावट थी सो कल यदुगिरि में विश्राम ले लिया था।"
"तो अभी सभी के पास खबर भेजनी होगी?।।
"सचिव नागिदेवण्णाजी और मैं, साथ ही आये। वे सब व्यवस्था करेंगे। कल की सभा में जिन-जिनको उपस्थित रहना होगा, अब तक उन सबके पास खबर पहुँच गयी होगी।"
"सभा में कौन-कौन रहेंगे?"
76 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग बार