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बीरशेट्टी ने तुरन्त कुछ नहीं कहा। "कहिए, शेट्टीजी!" "चंगला ने कहा ही है न?" "तो आप मानते हैं कि उसने सच-सच कहा है ?" "स्त्रियों की बात ! "ठीक. तब उन स्त्रियों को ही बलवाएंगे।" बिद्रिदेष ने कहा। "चंगला, तुम जाओ अब।'' चट्टलदेवी बोली।। बाद को एक औरत आयी । अधेड़ थी, पर सुन्दर । उसकी भाव-भंगी में चपलता
""तुम्हारा नाम?" चट्टलदेवी ने पूछा। "रत्ना।" "स्थान?'' "मंगलुला।" "कहाँ है यह?" "चालुक्य राज्य में।"
"ओह ! वही, सुना था कि चालुक्यनरेश को मंगलुला की किसी वेश्या से बहुत प्रेम हो गया था। वही मंगलुला?" बीच में शान्तलदेवी ने पूछा।
"हाँ, हम परम्परा से चालुक्य राजाओं के अधीन रही हैं।" "पोय्सल राज्य में क्यों आयी?' चट्टलदेवी ने पूछा। "मेरे मालिक बोरशेट्टी ले आये।"
"एक बार कहा कि हम राजा के अधीन हैं, अब कहती हो कि बोरशेट्टी मालिक हैं। यह क्या?"
"राजमहल की स्वीकृति पर ही मैं मालिक के साथ आयी थी।" "कब आयो?" "इन पट्टमहादेवीजी के विवाह के समय । तब मैं सोलह को थी।" "यहाँ तुम्हारा काम?" "सभी जगह मेरा एक ही काम है।" "इसके माने?" "वेश्यावृत्ति । मालिक की आज्ञा का पालन करना।" "तो मात्र बीरशेट्टी के लिए सुरक्षित नहीं रहीं ?''
"बेचारे, मेरे मालिक बहुत अच्छे हैं। यदि वे चाहते तो इनकार नहीं करती। उन्होंने कभी हमारी तरफ नहीं देखा।"
"चंगला को जानती हो?"
142 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार