________________
चम्पा आयी। मध्य- वयस्का शरीर कुछ मोटा हो चला था। फिर भी वह आकर्षक थी। आँखें चपल । उसके पीछे मायण भी कुछ पत्र का पुलिन्दा लेकर आ पहुँचा ।
44
'मायण के पास जो पत्र हैं. वे लगभग दस-पन्द्रह साल से संगृहीत पुराने पत्र हैं। चम्पा के पास अभी हाल का पत्र है। उस पत्र को वह सुरंग मार्ग से बाहर लाकर शत्रु-र -राज्य के गुप्तचर के हाथ देने आयी थी। गुप्तचर को पकड़ना उचित न समझकर, उन्होंने इसे पकड़ा। उस गुप्तचर को डरा-धमकाकर भगा दिया था। इस औरत को पकड़कर इसके पास से पत्र ढूँढ़ निकाला और उस पर इसके अँगूठे का निशान ले लिया था। यह जो पत्र हाल का लिखा है, उनके पास है। यह घटना, सन्निधान के आचार्यजी के साथ राजधानी पहुँचने के बाद घटी। हमने इन पत्रों को और चम्पा को गुप्त रीति से राजधानी भेज दिया। क्योंकि इसने उस गुप्तचर के साथ हमारे राज्य से भाग जाने की तैयारी कर रखी थी। वह गुप्तचर भी हमारे हाथों पड़ गया । " चाविमय्या ने बताया ।
"
'इसके हाथ में जो पत्र था वह कहाँ है ?" ब्रिट्टिदेव ने पूछा।
मायण ने उसे प्रस्तुत किया। उसे देखकर लौटाते हुए बिट्टिदेव ने कहा, "मायण, इससे पूछो कि यही वह पत्र है जो इसके पास था ?"
" चम्पा, तुम्हारे पास पत्र था न ?" मायण ने पूछा ।
उसने सिर हिलाकर स्वीकार किया।
"तुमको यह पत्र किसने दिया ?" "मेरे मालिक ने।"
"कॉन है तुम्हारा मालिक ?" "बीरशेट्टी जी।"
" पत्र में क्या था ?"
"
'मैं नहीं जानती।"
"यही है न वह पत्र ?"
"हाँ, यही मेरे अँगूठे का निशान हैं।"
"तुम कहाँ जा रही थीं?"
" मालिक की आज्ञा के अनुसार इस पत्र को चोल--प्रतिनिधि के पास पहुँचाना
था।"
"गुप्तचर वह काम कर सकता था, तुम क्यों जा रही थीं ?"
"मेरे हाथ में जो पत्र था उसके अनुसार काम हो तो तुरन्त आकर मिलने की बात मेरे मालिक ने मुझसे कहकर भेजा था। "
LI
'उस पत्र को पढ़कर सुनाएँ?" बिट्टिदेव ने कहा ।
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार : 149