________________
था। यह बात उस चीरशेट्टी को भी मालूम नहीं थी। इस सम्बन्ध में राजमहल के कुछ नौकर-चाकर उसके साथ मिले हुए थे। इसलिए महासन्निधान की आज्ञा के अनुसार यहाँ रानीजी की सुरक्षा की दृष्टि से, नयी ही व्यवस्था की गयी है। रानीजी निश्चिन्त होकर रह सकती हैं। अब यहाँ के सभी सेवक विश्वासपात्र हैं। मैं सनीजी की परिचिता हूँ, इसलिए मुझे आपकी सेविका बनकार रहने का आदेश दिया गया है। "
14
'उस वामशक्ति को मुझपर इतना विद्वेष क्यों ?"
11
'सो तो वे ही जानें, मुझे क्या मालूम ? कुल मिलाकर, उसे इन तिलकधारियों पर भयंकर क्रोध है । "
1+
* त्रिनामधारियों के बारे में उसकी क्या राय थी, सो तो वहीं मालूम हो गयी। वास्तव में उसे कड़ी सजा देनी चाहिए थी। लेकिन तभी पट्टमहादेवीजी ने कह दिया, 'चाहे वे कैसे भी हों, आखिर गुरुस्थान में रहे हैं, उन्हें देश से निकाल दिया जाए।' सन्निधान ने वही दण्ड दिया। तुम कुछ भी कहो चंगला, तो मेरा तो इस राजमहल के व्यवहार ने दिमाग खराब कर रखा है। जहाँ चाहे जा नहीं सकती, जिससे मिलना चाहूँ मिल नहीं सकती। स्वतन्त्र पक्षी की तरह थी, यह सब मुझे भारी बन्धन-सा लग रहा है । "
EL
'जैसा चाहें रहें। कोई रोक-टोक है? आज्ञा दें तो सब काम बन जाएगा। रनिवास की रीति से थोड़ा अभ्यस्त हो जाएँ तो सब ठीक हो जाएगा।"
14
"एक तरह से यहाँ हिल-मिल गयी थी। नौकर-चाकर भी मेरी पसन्द के थे। इन नये नौकरों के साथ जब तक हिल-मिलकर रहना न बनेगा तब तक कुछ मुश्किल पड़ेगी।"
"कुछ भी कष्ट न होगा, मैं तो हूँ न ?"
44
'ठीक हैं। सुना है कि बादशाह की बेटी यदुगिरि आयी है। यह सच है ?" " मैं नहीं जानती।"
" सचिव नागिदेवण्णाजी यहीं हैं या यदुगिर गये हैं?"
"नहीं, यहीं हैं।"
14
'उनसे कहो. कल फुरसत पाकर यहाँ आएँ।"
"कह दूँगी।"
"तो क्या बादशाह की बेदी के यदुगिरि आने की खबर यहाँ किसी को मालूम
नहीं ?"
" यादवपुरी में किसी ने यह बात नहीं कही। राजमहल को तो इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं । यदुगिरि की सारी बातें सचिव जानते हैं। शहजादो को यदुगिर क्यों
आना पड़ा ?"
44
'जमाना अजीब हैं। सुना कि उसे चेलुवनारायण से लगाव है, इसलिए वहाँ से
162 पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार