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मे चिढ़ पैदा कर दी और इस तरह अपना काम साध लिया। आचार्यजी को करामात के प्रभाव से अब महाराज श्रीवैष्णव बने हैं। इसीलिए तुम्हारे साथ विवाह भी करवाया। अब तुम्हारा भविष्य तुम्हारे हाथ में है। पहले तुम लड़के की माँ बन जाओ। यह काम गुस्सा करने से या असन्तोष के प्रदर्शन से नहीं सध सकता। उसके अस्त्र का प्रयोग उसी पर करके हमें अपना काम साध लेना होगा। पहले लड़के की माँ बनो, बाद को सौतियाडाह दिखाना। तब हम अपने अनादर का प्रतिकार कर सकेंगे।"
__ रानी लक्ष्मीदेवी ने कुछ नहीं कहा, चुपचाप सुनती रहो। वह अन्यमनस्क लग रही थी। थोड़ी प्रतीक्षा करने के बाद तिरुवरंगदास ने कहा, "क्यों बेटी, मेरी बात ठीक नहीं?"
"ऐसा नहीं। उन्होंने ही मुझे सौतियाडाह का सारा किस्सा सुनाया और उससे होनेवाले भयंकर परिणाम भी बताये। महाराज बल्लाल कैसे इसके शिकार बने, आदि सब बातें समझाकर कहा, 'हमें ऐसा नहीं बनना चाहिए। हममें किसी भी तरह का मतभेद हो तो हमें मिलकर आपस में ही निपटा लेना चाहिए और महाराज को खुश रखना चाहिए। यही हमारा कर्तव्य है। हम तीन थीं, तुम भी हमारे साथ शामिल हुई हो। हम सब एक वृक्ष के सहारे फलनेवाली लता-जैसी हैं। बहनों की तरह जीएँ!' आदि सब बातें बतायी थी । वह अब भी चित्रवत् मेरी आँखों के सामने हैं। अन्य दो रानियों की पट्टमहादेवी पर अपार श्रद्धा है। आपकी बात तो इसके बिल्कुल विरुद्ध है न?"
"कोई भी अपने बारे में ऐसी बातें करेगा जो उसके ही प्रति बुरी भावना उत्पन्न करे? वह सब राजनीतिक चाल है। आचार्यजी की अभिलाषा है कि पोयसल सिंहासन का उत्तराधिकारी श्रीवैष्णव ही बने। मैं उनका अपना हूँ इसलिए मुझसे उन्होंने कहा
"ऐसी बात है?"
"अच्छा सवाल किया बेटा, ऐसा न होता तो तुम्हें क्यों रानी बनाते । उन्होंने ही एक दिन तुमसे कहा था न-"बिट्टिदेव महाराज बहुत ही उत्तम व्यक्ति हैं, तुम्हें उनके योग्य बनना होगा।' क्या वह पागल थे जो ऐसा कहने गये?"
__ "सब छोड़कर वे ऐसी अभिलाषा करते हैं कि अमुक ही इस सिंहासन पर बैठे?"
"बेटी, क्यों अनजान की तरह बातें कर रही हो! इस पोय्सल वंश का जन्म किससे हुआ?"
"सुना है कि 'सल' महाराज से।" "मल महाराज के प्रेरक कौन थे?" "उनके गुरु।"
पट्टमहादेवा शान्तला : भाग चार :: 165