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है वह महान् विद्रोहकारी है। लिखा है 'विजयोत्सव के दिन पट्टमहादेवी को खतम कर दें। जैनों की कमर तोड़ने के लिए दूसरा कोई उपाय नहीं। उन्हें खतम न किया गया तो श्रीवैष्णवों के लिए यहां कोई काम ही नहीं रह जाएगा।"
"शान्तं पापं, शान्त पाप!" आचार्यजी ने कान पर हाथ रख लिये।
"ऐसी हालत में सन्निधान स्वयं समझ सकते हैं कि श्रीवैष्णवों को धूर्तता कहाँ तक पहुँच चुकी है।'' गण्डविमुक्तदेव एकाएक कह उठे।
तब मायण आगे आया। प्रणाप कर बोला, "श्री गुरुवर्य को इसके दूसरे पहलू भी भी जानकारी हो । माय: एका नौ को बुलाकर उससे कहा, "उस वामशक्ति पण्डित को बुलवा लाओ।"
गुरु के पद पर आसीन वामशक्ति पण्डित को दो व्यक्ति पकड़कर लाये। वामशक्ति पण्डित का नाम सुनकर पट्टमहादेवी चकित हो उठीं। अब समक्ष देखकर उनके मन में उसके प्रति एक असह्य घृणा का भाव उभर आया-मैंने एक दिन इनके अपवित्र चरण छुए थे, शायद यह किसी पुराकृत पाप का फल होगा। मायण बिना प्रमाण के गुरुस्थान में रहनेवालों को यों नहीं पकड़ लाएगा-यह उनका मन कह रहा था।
"ये गुरु भी इस षड्यन्त्र में शामिल हैं ?" बिट्टिदेव ने पूछा।
"यह बोरशेट्टी और यह वामशक्ति पण्डित दोनों एक ही पेड़ की दो शाखाएँ हैं। एक दिन इस शेट्टी के तलघर में जैनों को एक बैठक हुई थी। उस दिन मैं स्वयं भेष बदलकर उस तलघर में गया था। उस दिन उस सभा में यह गुरु कहलाने वाला व्यक्ति जिस तरह की बातें कर रहा था, उसके स्मरण मात्र से असहनीय वेदना होती है। यदि मुझे अधिकार होता तो उसी क्षण इसका पेट चीरकर इसे खतम कर देता।"
।"क्या कह रहा था?" शान्तभाव से घिट्टिदेव ने पूछा। "उसी से पूछ सकते हैं।" "वह झूठ भी बोल सकता है।"
"झूठ नहीं बोल सकता। क्योंकि उसको मालूम है कि सत्य को प्रकट करने के लिए हमारे पास प्रबल साक्ष्य मौजूद हैं। यह गुरु शराब पीने में निष्णात है। शराब पीने को सल्लेखन व्रत पालन से भी ज्यादा श्रेष्ठ मानता है। लम्पटता के लिए यह प्रसिद्ध है । इस शेट्टी के उस तलघर में अनेक शयन-गृह हैं। इस गुरु की रातें वहीं बीतती हैं। इसके संग जो स्त्री थी वह इसी से बिगाड़ी गयी स्त्री है। इस गुरु की सारी बातों को इसने विस्तार से बताया है। वह अकेली ही नहीं, इससे संगसुख पाने वाली और भी दो वेश्याएं हैं। इसलिए समझ सकते हैं कि यह झूठ नहीं बोल सकता।"
"क्यों वामशक्तिजी, मायण की बातों पर आपकी प्रतिक्रिया क्या है?" बिट्टिदेव ने पूछा।
"साध नहीं सका, तब प्रतिक्रिया ही क्या? तुम एक धर्मद्रोही राजा हो। यह
152 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार