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सम्बन्ध है?11
"ऐसा किसने कहा?" "तुमने और बाकी वेश्याओं ने।" "मैंने तो ऐसा नहीं कहा!" "कुलत बोल । गल. मतान है भावा"
"उसे उत्साहित करने के लिए ऐसा कह आया होगा। भला रानी लक्ष्मीदेवी पट्टमहादेवी कैसे बन सकती हैं? वह हमारे महाराज की चौथी रानी हैं न!"
"यह जानते हुए भी झूठ बोलने का साहस तुम्हें कैसे हुआ? तुमको एक बात मालूम है ? बिना आग के धुआँ नहीं निकलता। सच-सच बताओ!"
"जो जानती हूँ, सो कहा है। आपके मानने लायक बात कहूँगी तो वहीं सत्य है क्या?"
"ऐसी बात है? तब देख ही लें कि सत्य क्या है।" कहकर चट्टलदेवी ने चाविमय्या की ओर देखा।
चाविमय्या ने कहा, "उस चन्दुगी को बुला ला।" चन्दुगी लाया गया। फिर बोला, "उस तिलकधारी को पकड़ ला।" वह तिलकधारी भी लाया गया।
चाविमय्या ने उस तिलकधारी से पूछा, "तुम्हारा नाम क्या हैं?" उस तिलकधारी ने हकलाते हुए कहा, "मेरा नाम...मेरा नाम...नाम तिलकधारी।"
"किसी का ऐसा नाम नहीं होता।अपना सही नाम क्या है, बता दो।"चाविमच्या ने कहा।
"मैंने जो कहा वही मेरा सही नाम है। किसी और ने ऐसा नाम नहीं रखा तो क्या मैं भी यह नाम नहीं रख सकता?"
''अच्छा, जाने दो।" चन्दुगी की ओर निर्देश करके चाविमय्या ने पूछा, "इस तुम जानते हो?"
"अच्छी तरह जानता हूँ।" तिलकधारी ने कहा। "चन्दुगी! इसे तुम जानते हो?" 'नहीं। मैंने इसे देखा ही नहीं।"
"र चन्द्गी ! यों झूठ मत बोल । उस दिन मैं और तुम, और आठ-दस लोग बोरशेट्री के यहाँ तलघर में एक साथ मिले थे न?"
__ चन्दुगी ने अकचकाकर उस तिलकधारी की ओर देखा। उसकी नाक पर पसीने की बूंदें जम आयी थी।
"तलघर में मैंने किसी तिलकधारी को देखा ही नहीं।" चन्दुगी बोला। ___ "तो बात यह हुई कि तुम तलघर में गये हो। इसे तुमने मान ही लिया न? वहाँ क्या काम करते थे?" चाविमय्या ने पूछा।
144 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग। चार