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कभी भी रानी लक्ष्मीदेवी के बारे में एक भी अप्रिय शब्द नहीं कहा। फिर भी रानी लक्ष्मीदेवी उनके प्रति ऐसी क्यों हैं, यही समझ में नहीं आता। यह ठीक नहीं है। इसलिए मुझे जैसा प्रतीत हुआ, मैंने निवेदन किया। राजमहल में यह बात कहने का साहस नहीं हुआ।"
"ऐसी ही कुछ बात होगी, यही समझकर मैंने रानी और उनके पिता को उस दण्डनाथ के साथ बदुगिरि भेज दिश. "
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'तो क्या सारी घटना से आप परिचित हैं, ऐसा समझैं ?”
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'सब कुछ मालूम हैं, ऐसा तो हम नहीं समझते। यह भी कह नहीं सकते कि
तुम जो जानती हो वह हमें भी मालूम है। जब पट्टमहादेवी ने सलाह दी कि हमें यहाँ आना चाहिए तब भी हमने नहीं समझा कि कुछ दाल में काला है। पट्टमहादेवी ने भी इस सम्बन्ध में कोई ऐसी वैसी बात नहीं कही।"
" वे कह देती तो अच्छा होता !"
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'कह सकती थीं । न कहने का क्या उद्देश्य है, इसे मैं समझ नहीं पा रहा हूँ । खैर, अब तुम्हीं बताओ, बात क्या है ?"
"सुना कि इस मौके पर यदि आचार्यजी यहाँ आएँ तो जैन मतावलम्बियों से उनके प्राणों को खतरा है। अतः वे तिरुमलाई में ही ठहरें तो अच्छा! इस तरह का समाचार आचार्यजी के पास पहुँचाया गया है।"
"ऐसा है ! इस तरह का समाचार किसने भेजा हैं ?11
'यह तो प्रकट नहीं हुआ कि समाचार भेजनेवाले कौन हैं। सुना कि राजमहल से यह समाचार भेजा गया है।"
"यह खबर कौन देने गया ?"
"सुना कि कोई अपरिचित व्यक्ति हैं, और यात्री की हैसियत से आये थे । यह भी सुना कि यात्रियों की एक छोटी टोली ही आयी थी. आचार्यजी का दर्शन करने। उनमें से एक यात्री दूसरे से ऐसा कह रहा था, यह भी सुना। हमारी चट्टला की बहन चंगला यहाँ दण्डनायिका एचियक्का के यहाँ काम करती है। वह उस तरफ से झाड़ियों के पास से गुजर रही थी तो ये बातें उसके कानों में पड़ीं। बात आचार्यजी से सम्बन्धित होने के कारण उसने आड़ में छिपकर उनकी सारी बातें सुनीं और उस व्यक्ति को देखा। उसने दण्डनायिकाजी को बताया, यही सुनने में आया है। सन्निधान उसे बुला कर पूछताछ करें तो पूरी बात मालूम हो सकती है। ऐसा क्यों किया और इसका फल क्या होगा, यह मुझे मालूम नहीं पड़ा। दण्डनायिकाजी ने दण्डनायकजी के लौटते ही उन्हें बता दिया है। परन्तु सुना कि इतने में सभी यात्री यहाँ से जा चुके थे।"
" तो मतलब यह है कि किसी स्वार्थ से कुछ लोग जैन- वैष्णवों में झगड़ा पैदा करने में लगे हैं। पता लगाकर ऐसे लोगों को निर्मूल कर देना होगा। इस प्रवृत्ति को
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार : 101