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उठते हैं। पोयसल राज्य में ऐसा नहीं होना चाहिए था। हमें लगता है कि राजकीय निर्वहण में कहीं कोई ढिलाई हुई है। हमने यह बात पट्टमहादेवीजी एवं महाराज से भी कही। उन्होंने इस सम्बन्ध में सभी स्तरों पर जरूरी तहकीकात की होगी। तात्पर्य यह कि जैन-वैष्णव विद्वेष का बीज बोकर दोनों तरफ की जनता को उकसाकर कुछ लोग अपने स्वार्थ-साधन में लगे हुए हैं, यह निश्चित है। ऐसे श्रीवैष्णवों को देशनिकाले का दण्ड देना, देशहित की दृष्टि से, आवश्यक प्रतीत होता है।" उन्होंने बेधड़क होकर घोषित ही कर दिया।
फिर गण्डविमुक्तदेवजी ने भी इसी तरह के प्रचार होने की बात बतायी।
उनके विचार व्यक्त करने के पश्चात् श्री आचार्यजी ने कहा, "इस कार्य को करनेवाले वास्तव में मतद्रोही हैं। उन्हें न धर्म का ज्ञान है, न व्यवहार की जानकारी ही है। अब कुल मिलाकर बात यह हुई कि ये लोग जैन और श्रीवैष्णवों में आपस में द्वेषभाव पैदा करके सारे राज्य में एक भारी तहलका मचाना चाहते हैं। ऐसे धर्म-द्रोहियों का पता लगाकर उन्हें कठोर दण्ड दिया जाना चाहिए।"
___ "आपके प्रिय शिष्यों ने इस तरह का कार्य किया हो तो?"प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव जी ने प्रश्न किया।
दि आपके शिष ने भाई काम किया हो तो उन्हें जो दण्ड मिलेगा, इन्हें भी वही देना चाहिए।" आचार्यजी ने कहा।
"वे शिष्य भी हो सकते हैं, नहीं भी हो सकते हैं। इन तीन धर्म प्रवर्तकों ने जो कहा उन बातों के प्रकाश में अब विचार करेंगे। इन कार्यों में किस-किसका हाथ है, इसका पता लगाने के लिए हमने मायण-दम्पती को नियुक्त किया था। उन्होंने हमारे गुप्तचर नायक चाविमय्या की मदद लेकर आखिरकार इन बातों का पता लगा ही लिया। उन्होंने जो जानकारी प्राप्त की है वह वे स्वयं आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।" महाराज बिट्टिदेव ने कहा।
चाविमय्या उठा, आगे आया। महाराज और पट्टमहादेवी को प्रणाम किया और बोला, “महासन्निधान की अनुमति लेकर आज की इस सभा के सामने विचार होने के पूर्व दो बातें कहना चाहता है। इस चर्चा से सम्बन्धित सभी बातों का पता लगाने के लिए सन्निधान ने मायण और उनकी धर्मपत्नी चट्टलदेवी को नियुक्त किया था। साथ ही, उन्हें यह स्वतन्त्रता भी दी थी कि सहायता के लिए चाहे जिसे साथ ले सकेंगे। मैं इस राजमहल के गुप्तचरों में बहुत पुराना व्यक्ति हूँ, इस वजह से उन लोगों ने मेरी मदद माँगी। इसके साथ, इस सभा के समक्ष साथियों को प्रस्तुत करने तथा अन्य साम्प्रदायिक कार्यों का निर्वहण करने आदि का कार्य मुझे सौंपा है। महासन्निधान की स्वीकृति है, यह मानकर उनके आदेश से मैं आप लोगों के समक्ष उपस्थित हुआ हूँ। तीनों गुरुवर्यों ने जो बताया वह बहुत हद तक सत्य है। इस षड्यन्त्र को इस तरह
134 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार