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आँखें खोलकर कहा, "भगवान् की लीला ही परमाश्चर्यजनक है। सच है, उस एक शुभ मुहूर्त में राजकुमारी की बीमारी दूर हो गयी हमारी वजह से। परन्तु उस कारण से उस बच्ची पर हमारा कोई अधिकार नहीं है। इस संसार में जन्म लेते समय ही इस तरह के सम्बन्धों के निर्णय वहीं हो जाते हैं। उसे रोकना किसी से भी सम्भव नहीं । ऐसा प्रयत्न भी किसी को नहीं करना चाहिए। यहीं इसके अनेक साक्षी मौजूद हैं। रानी पद्मलदेवोजी से ही बड़े राजकुमार का विवाह कराने का प्रयत्न चला था। परन्तु उनके साथ उनकी बहनों का भी विवाह उन्हीं राजकुमार से हुआ। हमारी पट्टमहादेवीजी या उनके माता-पिता ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतने बड़े घराने में सम्बन्ध होगा । फिर भी उन्हें कितनी तकलीफ उठानी पड़ी। वे केवल राजघराने की बहू ही नहीं, बल्कि पट्टमहादेवी बनकर राष्ट्र की प्रजा के मानस में स्थायी स्थान पाकर विराज रही हैं। उन्हें अपने पतिदेव की एकमात्र पत्नी होकर रहने की इच्छा थी। परन्तु अब महाराज को तीन और रानियाँ हैं। इस तरह ऐसी बातें हमारी आशा-आकांक्षाओं से परे निर्णीत हो जाती हैं। ऐसी हालत में इस सगाई के विषय में हम जो कुछ सोचते विचारते हैं, वह सब भगवान् की प्रेरणा से ही होता है। इसलिए हम सभी को चाहिए कि इन बातों पर और अधिक चर्चा न करके हम भगवान् से यही प्रार्थना करें कि यह इन छोटे बच्चों के दाम्पत्य जीवन को सुखमय बनाए। इतना ही हमारा कार्य है। मुहूर्त निश्चित करें।" मुहूर्त निश्चित किया गया। नूतन वस्त्रों का आदान-प्रदान हुआ।
माचिकव्वे ने धीरे से कहा, "इसी सन्दर्भ में कुमार बल्लाल के विवाह की भी बात निश्चित कर ली जाती तो अच्छा होता !"
"वह तो निश्चित ही है, माँ! परन्तु उसके लिए अभी कोई जल्दी नहीं । तीनचार वर्ष के बाद देखेंगे।" शान्तलदेवी ने कहा ।
मरियाने का विवाह शार्वरी संवत्सर माघ सुदी पंचमी के लिए निश्चित हुआ था। यह विवाह इसी शार्वरी में माघ सुदी सप्तमी के लिए तय हुआ। यह भी निश्चित हुआ कि दोनों विवाह राजधानी में ही सम्पन्न हों। इसके बाद सगाई पर आयोजित विशिष्ट भोज में सम्मिलित होने के लिए सभी चल पड़े।
केतमल्ल फिर वेलापुरी आये। विजयोत्सव के बाद दूसरे ही दिन वह दोरसमुद्र चले गये थे। एक पखवाड़ा बीत चला था। इस बीच एक विचार गोष्ठी हो चुकी थी। पश्चात् राजकुमारी के विवाह के लिए मुहूर्त भी निश्चित हो चुका था। महाराज मायणचट्टला की प्रतीक्षा कर रहे थे, तभी केतमल्ल महाराज के सन्दर्शन के लिए उपस्थित
पट्टमहादेवी शान्तला भाग ना
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