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"मैं अब युवा हूँ। मुझे अब राजकाज का काफी परिचय भी हो चुका है। यहाँ राजधानी में रहूँगा तो मेरे लिए कोई काम नहीं रहेगा। खाना-पीना, कसरत करना, इन्हें छोड़कर कोई अन्य काम नहीं है। इसलिए मुझे राज्य के किसी भाग में भेजकर वहाँ के कार्य को सँभालने की जिम्मेदारी दें तो मुझे भी सेवा करने का मौका मिलेगा।" कुमार बल्लाल ने कहा ।
"चालुक्यों को पराजित करने के बाद बलिपुर का प्रान्त हमारे कब्जे में आ गया हैं। वहाँ भेज सकते हैं।" शान्तलदेवी ने कहा ।
"उसको अकेले भेजने के लिए हम तैयार नहीं।"
'बलिपुर के उस प्रदेश से हमारे पिताजी अच्छी तरह परिचित हैं। उनके साथ भेलते हैं।" शब्द का
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'इस उम्र में उन पर अधिक जिम्मेदारी डालना क्या उचित होगा ?" ब्रिट्टिदेव
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बोले ।
"अभी दो-तीन वर्ष पूर्व ही शान्ति यज्ञ किया गया था। कोई हर्ज नहीं।". शान्तलदेवी बोली।
" सोचेंगे। क्योंकि अप्पाजी अभी चौदह वर्ष के ही हुए हैं। हृष्ट-पुष्ट होने से 'जवान लगते हैं।" कहकर बिट्टिदेव ने इस बात पर पूर्ण विराम लगा दिया। सभा विसर्जित हुई। इसके दो दिन बाद इस सभा के लिए जो रुके थे वे सब लौट गये। 'डाकरस दण्डनाथ, उनका परिवार, बड़ी रानियाँ पद्यलदेवी, चामलदेवी और बोप्पिदेवी राजकुमारी के विवाह के लिए मुहूर्त निश्चित करने के निमित्त रुकी रहीं । यह काम सम्पन्न हो जाए तो कन्यादान का पुण्य फल भी मिल जाएगा। माचिकों ने इसे जोर देकर कहा था । अलावा इसके, रानी पद्मलदेखी ही ने यह बात सुझायी थी और इस विषय में उनकी विशेष दिलचस्पी भी थी ।
पोचिमय्या की बेटी मुद्दला का विवाह अन्यत्र हो चुका था। डाकरस के बड़े पुत्र मरियाने के साथ, एचियक्का दण्डनायिका के भाई का बेटा होने के नाते, उसकी सगाई निश्चित हुई थी और मुहूर्त भी निश्चय किया जा चुका था। ऐसी हालत में इस विवाह के लिए मुहूर्त निश्चित करने में कोई बाधा भी नहीं रही। बिट्टिदेव की राय थी कि सगाई के दिन आचार्यजी की उपस्थिति बहुत ही संगत है। आचार्यजी इस बारे में कुछ भी नहीं जानते थे। राजकुमारी हरियलदेवी आचार्य की ही कृपा से नीरोग हुई थी। उस दिन उन्होंने उसे हरी को पुत्री श्रीवैष्णव कहकर आशीर्वाद भी दिया था। बिट्टिदेव के मन में दुविधा पैदा हो गयी आज पट्टमहादेवी मेरे बड़े भाई की पटरानी पद्यलदेवी की इच्छा से अपनी उसी बेटी को एक जैन परिवार में ब्याह दे रही हैं, यह सुनकर आचार्यजी क्या सोचेंगे।' उन्होंने अपने इस विचार को छिपाया भी नहीं। पट्टमहादेवी को बताया भी नहीं। शान्तलदेवी ने कहा, "यह हमसे सम्बन्धित बात है। हमारे इस
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124: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार