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उधर महाराज बिट्टिदेव डाकरस दण्डनाथ के साथ कोवलालपुर की ओर रवाना हुए। कोवलालपुर पहुंचकर फिर वहाँ की सेना एवं उदयादित्य को साथ लेकर नंगलि पहुँच गये। वहाँ एक मजबूत रक्षक सेना को तैनात कर, उस पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी अपने भाई उदयादित्य को सौंपने का निर्णय करके वहाँ से माचण को साथ लेकर, कंची की ओर रवाना हो गये। तलकाडु के युद्ध में मार खाकर आदियम, दामोदर और नरसिंह वर्मा छिपकर भाग गये थे। उन लोगों ने जाकर राजेन्द्र चोल से पोसलों के युद्धकौशल एवं युद्ध-नीति का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया। राजेन्द्र चोल को पोय्सलों से चाहे कितना ही द्वेष हो, उसने जल्दबाजी से कोई काम न करने का विचार कर, युद्ध से सम्बन्धित सारी कार्रवाइयों को अपने ही नेतृत्व में संचालित करने का निर्णय किया। परन्तु अधिक उम्र हो जाने के कारण उन्होंने अपने बेटे विक्रमचील को अपने सब अधिकार सौंपकर उसे सारी न.परि समझा ही।
विक्रम चौल को बिट्टिदेव के गुप्तचर दम्पती की योजना मालूम थी। उनके बारे में उसने कड़ी आज्ञा दे रखी थी कि कोई शंकास्पद पुरुष या स्त्री मिले, तो उसे बांधकर ले आएँ।
पोय्सलों की गतिविधि के बारे में यह बराबर समाचार प्राप्त करता रहता था। बीच रास्ते में उन पर हमला करने से अधिक उचित होगा कंची में ही उनका सामना करना, यह सोचकर पोय्सानों के हमले को विफल बनाने के उद्देश्य से उसने सारी तैयारियाँ कर ली थीं। पल्लव-काल में निर्मित किले को और अधिक सुरक्षित बनवाने के लिए आवश्यक मरम्मत करवा दी गयी थी। अपने गुप्तचर जत्थे को भी और विस्तृत बना दिया गया था।
बिट्टिदेव ने यह समझकर कि पिनाकिनी नदी के किनारे पर ही शत्रु का सामना करना पड़ेगा, अपने गुप्तचरों को भेजकर शत्रु को शक्ति को पहले से जान लेने का इन्तजाम कर लिया था। अब की बार चट्टला और मायण को आगे बढ़ने नहीं दिया था। सारी सेना को कंची में ही रखकर सामना करने की तैयारी के लिए गुप्तचरों ने खबर दी थी। इसलिए उनकी सेना बिना किसी व्यवधान के कंची की ओर बढ़ चली।
गुप्तचरों से प्राप्त समाचार के कारण, अपने रास्ते को थोड़ा बदल दिया था। समाचार यह था कि नरसिंह वर्मा, जो तलकाडु के युद्ध में मार खाकर भाग गया था, चेंगिरि के संरक्षण के उद्देश्य से सेना के साथ वहाँ बैठा है, उसे हराये या गिरफ्त में लिये विना कंची की ओर बढ़ते हैं तो पीछे से हमला होने की प्रबल सम्भावना है। इसलिए उसे पूरी तौर से खतम कर, अपने रास्ते को सुगम बनाने के ख्याल से ऐसा हो निर्णय करके, पोय्सल सेना –गिरि की ओर मुड़ी। नरसिंह वर्मा इस बात को जानता था और इसलिए वह युद्ध के लिए तैयार बैठा था। जोरों का युद्ध हुआ। वह पोय्सल सेना का सामना न कर सका और अन्त में हारकर युद्ध में मारा गया। इस विजय से
84 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार