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जाने के बाद नाहाना नहीं चाहिए। आज जागने में विलम्ब हो गया। मेरे कारण देरी हो रही है। माफ करें।"
"मुहूर्त..."
"उसमें बाधा न पड़ेगी। मैं जल्दी ही आ जाऊँगी। रेविमय्या, पता लगाओ कि बम्मलदेवी स्नान कर चुकी हैं?"
"हौं, कर चुकी हैं।" राजलदेवी ने कहा। ''टीक। मैं अभी आयो।" कहती हुई शान्तलदेवी जल्दी-जल्दी चली गयीं।
बिट्टिदेव बैठ गये। रानी राजलदेवो भी बैठ गयीं। थोड़ी ही देर में कुमार बल्लाल भी वहाँ आ गया।
शान्तलदेवी के जाने के थोड़ी ही देर के अन्दर रानी बम्मलदेवी मंगलद्रव्य-युक्त परात पकड़े दो नौकरानियों के साथ वहाँ आयीं! इतने में स्नान कर शुभ्रवस्त्र धारण करके हरियलदेवी, छोटे बिट्टिदेव तथा विनयादित्य को साथ लेकर शान्तलदेवी भी आ पहुँचीं। यात्रा के लिए प्रस्तुत महाराज, रानी और राजकुमार को तिलक करके आरती उतारकर, शुभकामना करते हुए विदा करना था। महाराज, रानी और राजकुमार तीन रहेंगे और तीन का होना शुभ नहीं माना जाता, इसलिए उनके साथ हरियल देवी को खड़ा करके शान्तलदेवी और बम्मलदेवी ने आरती उतारी। बिट्टियण्णा भी तब साथ में था।
"भगवान् के समझ एक दिन रानी पद्मलदेवी ने कहा था कि हरियला का विवाह डाकरस दण्डनायक जी के लड़के भरत के साथ सम्पन्न हो तो बुजुर्ग मरियाने दण्डनायकजी के घराने के साथ राज-परिवार का सम्बन्ध बढ़ेगा। इस तरह सम्बन्ध जुड़े, इसका विचार कर अनुकूल निर्णय करें तो अच्छा होगा। अभी डाकरस दण्डनाथ जी यादवपुरी में होंगे ही। सन्निधान इस सन्दर्भ में विचार करके निर्णय कर आएँ ।" शान्तलदेवी ने कहा।
"तुम साथ होती तो अच्छा होता न?" "डाकरसजी मान लें तन्त्र उन दम्पती को बुलवाकर मुहूतं निश्चित कर लेंगे।" "दण्डनायिकाजी की राय?'' "इसे अपना सौभाग्य मानेंगी।" "तो इस सम्बन्ध में पहले ही निर्णय हो चुका है?"
"क्या सब हुआ है सो राजलदेवी जानती हैं । सन्निधान को यह बात मोटी तौर से विदित भी है।"
"ठीक।"
महाराज बिट्टिदेव, रानी राजलदेवी, बिट्टियण्णा और कुमार बल्लाल को विदा करने के लिए हरियलदेवी, शान्तलदेवी, बम्मलदेवी, छोटे बिट्टिदेव और विनयादित्य
94 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग मार