________________
तैयारियाँ हो चुकी हैं। जाने से पहले आपसे पूछकर जाने के इरादे से आयी थी।" " राजलदेवी, सन्निधान ने बहुत ही अच्छा किया। तुम्हें उनके सान्निध्य का लाभ इस तरह कभी नहीं मिला था । "
"उन्हें मेरा सान्निध्य तृप्ति दे सके, इतना ही मेरे लिए पर्याप्त है।"
14
'क्यों? शंका क्यों करती हो ?"
"आपकी तरह मुझमें न प्रतिभा हैं न बम्पलदेवी की तरह मैं होशियार हूँ। मेरा सम्पूर्ण जीवन मौन रहने में ही बीता है।"
"ऐसा अवसर नहीं मिला था। अवसर मिलने पर स्त्रीत्व उसमें स्वतः समा जाता है। शंका मत करो। "
"मुझे इस बात की शंका है कि यादवपुरी में मिल-जुलकर रहना मुझसे हो सकेगा। मैंने रानी लक्ष्मीदेवी को समझ नहीं पाया। "
1"
'अब उन्हें समझने का मौका खुद-ब-खुद आया है। उससे तुम्हें अच्छा अनुभव भी मिल जाएगा।"
LL
'आप जानती ही हैं कि मैं बहुत बात भी नहीं करती।"
+
" वहां यहीं अत्यन्त उत्तम है। आँख खुली रहें, मुँह बन्द रहे, तब वहाँ की सारी
रीति जल्दी ही तुम्हारी समझ में आ जाएगी। इतना खयाल रखना कि सन्निधान सदा
खुश रहें।"
इतने में रेवमय्या ने आकर प्रणाम किया। शान्तलदेवी ने पूछा, "तुम यादवपुरी जाओगे, रेविमय्या ?"
"हाँ ।" उसने कहा ।
14
'ठीक। तब तो मैं निश्चिन्त हो गयी। रानी राजलदेवी की ओर भी तुम्हारा ध्यान रहे।" शान्तलदेवी बोलीं ।
'सन्निधान तैयार होकर रानीजी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं।"
5.
41
" आपके साथ ?"
"बिट्टियण्णा और कुमार बल्लालदेव भी जाएंगे :"
"मायण - चट्टला ?"
"नहीं।"
H
66
'ठीक हैं।" शान्तलदेखी उठीं। साथ ही रानी राजलदेवी भी उठीं। रेविमय्या ने परदा हटाया। दोनों बाहर आयीं। फिर वह परदा छोड़कर जल्दी-जल्दी उनके आगेआगे कदम बढ़ाता चलने लगा। दोनों महाराज के विश्रान्तिगृह में जब पहुँचीं तब महाराज चहलकदमी कर रहे थे।
"सन्निधान ने जल्दी ही यात्रा का निश्चय किया-सा लगता हैं। मुझे कुछ घण्टेआध घण्टे का समय दें तो इतने में मैं नहा धोकर आ जाऊँगे। सन्निधान के रवाना हो
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार : 93