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" सन्निधान का ऐसा विचार हो सकता है। परन्तु यदि मेरी बात मानें, वह सारा काम छोटी रानी की जानकारी के बिना हुआ है। इसलिए सन्निधान का उस पर क्रोध करना उचित नहीं होगा। सन्निधान को जो खबर मिली है वह सच्ची नहीं। उसे कुछ रंगकर बताया गया है, ऐसा लगता है। वह अज्ञान के कारण हुआ है या किसी उद्देश्य को लेकर इसे जानना चाहिए।"
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'छोटी रानी पर क्रोध दिलाने में उसके पीछे किसी का स्वार्थ है क्या ?"
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'हो सकता है। छोटी रानी पर सन्निधान क्रोधित होंगे तो उसका मैं ही कारण हूँ, यह सोचकर उसने अपना स्वार्थ साधा हो। इसलिए अभी सोच-विचार कर लें, यही अच्छा है। मैंने सभा में जो सलाह दी, वह आकस्मिक नहीं, सोच-समझ कर ही सलाह दी है। वह दिखावा नहीं था । "
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'तो जो कुछ हुआ सो ब्यौरेवार जान सकेंगे ?"
शान्तलदेवी ने विस्तार के साथ सारी बातें बतार्थी, और कहा, "मुझे उन तिरुवरंगदास से कोई द्वेष नहीं। पर उनके काम तोड़-फोड़ करने में सहायक बने हैं, यह मेरा स्पष्ट अभिमत है। अब राजमहल से उनका सम्बन्ध हो गया हैं, इसलिए हमें बहुत सतर्क होकर व्यवहार करना पड़ेगा ।"
"किसी व्यक्ति विशेष से हमें डरने की आवश्यकता नहीं है ।"
"यहाँ मतान्तर की भी बात निहित है। और सन्निधान ने उस मत का अवलम्बन लिया है। इसलिए अनजान लोगों को उकसाकर, तोड़-फोड़ करना बहुत आसान है। इस कारण सन्निधान इस सन्दर्भ में इस तरह का व्यवहार करें मानो कुछ नहीं हुआ हैं। सन्निधान का छोटी रानी को अपने सान्निध्य का सुख देकर उसके साथ सहज रीति से व्यवहार करना, राज्य की एकता को दृष्टि से बहुत ही आवश्यक है।"
"बाकी रानियों के लिए वह सान्निध्य सुख नहीं चाहिए था... ?" "रुक क्यों गये ?"
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'या सान्निध्य-सुख उनके लिए सह्य न होगा ?"
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'अनुभवपूर्ण संयम, यौवन का उत्साह दोनों एक नहीं हैं, यह बात सन्निधान को अविदित नहीं है । "
"तो पट्टमहादेवी की सलाह क्या है ?"
" सभा में ही निवेदन कर दी थी । "
"वहाँ नहीं जाना...
"सो क्यों ? ठीक है, महाराज का निर्णय व्यक्तिगत है। कोई उनके उस स्वातन्त्र्य का हरण नहीं कर सकता।"
बिट्टिदेव तुरन्त कुछ न बोले। उन्होंने एक भावपूर्ण दृष्टि से शान्तला की ओर
देखा ।
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पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 89