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कर रहा था। पोय्सलों से उसे यह डर था कि वे उसके अस्तित्व को ही मिटा देंगे। इस डर की वजह से, और हाल में कंची-युद्ध में विजय प्राप्त करने की खबर सुनकर इरुक्कवेलन अपने अधीन सेना को लेकर अपनी राजधानी की ओर भाग चला। फिर भी दुम्पी के पास दोनों सेनाओं में टक्कर हो गयी। इरुक्कवेलन के इतने जल्दी तैयार हो जाने की आशा बिट्टिदेव को नहीं थी, इस वजह से उन्हें कुछ पीछे हटना पड़ा। फिर भी घमासान लड़ाई हुई, काफी लोग दोनों ओर के कट-भरे भी। अन्त में विजय इन्हीं की हुई। शनिवार का दिन था वह । पाण्ड्यों पर पूर्णरूप से विजय पा चुकने के बाद, बिट्टिदेव ने माचण के नेतृत्व में एक सैन्यदल को भेजकर 'उच्चंगी' के किले को भी अपने अधिकार में ले लिया। वहाँ अपना झण्डा फहराने का आदेश देकर वे पुनः गंगराज से आ मिले।
पाण्ड्य के पराजित होने की खबर चालुक्य-सामन्तों को लग गयी । एक दूसरी खबर यह भी मिली कि हामुंगल के पतन के बाद पोयसलों की सेना गोवा की ओर बढ़ चली है। इससे सामन्त समवाय की सेना में खलबली मच गयो। वे पीछे की ओर खिसक जाने की बात सोचने लगे। यह बात गुप्त रखने की कोशिश तो उन्होंने की, परन्तु उनके सैन्य में जड़ जमाये पोय्सल-गुप्तचरों ने यह खबर गंगराज को दे दी। ठीक इसी समय पर बप्पलदेवी का युद्ध-शिविर में ही स्वास्थ्य खराब हो गया। स्थिति भाँप कर गंगराज ने अन्य अधिकारियों से भी सलाह-मशविरा करके, महाराज से रानीजी के साथ वेलापुरी लौट जाने की विनती की और बड़ी मुश्किल से मना लिया। बात को गुप्त रखने की हिदायत दी गयी। महाराज, रानी, मायण और चट्टला भेस बदलकर बार-छ: अंगरक्षकों के साथ शिविर से चलने की तैयारी करने लगे। इस तरह गुप्त रीति से उन्हें विदा किया गया।
अब युद्ध की पूरी जिम्मेदारो गंगराज पर आ पड़ी। उस वीर को यह दायित्व सहर्ष शिरोधार्य था। महाराज के प्रस्थान कर जाने के बाद एक सप्ताह के अन्दर-अन्दर गंगराज ने चालुक्य सामन्तों की सम्मिलित सेना पर रात के वक्त हमला करने का निर्णय ले लिया। उन्होंने अपनी समस्त सेना को एकदम आगे बढ़ा दिया। भयंकर युद्ध हुआ। उस सम्मिलित सेना को तहस-नहस कर दिया गया। पोय्सलों की जीत हुई। चालुक्य विक्रमादित्य पेमांडी के पक्षधर सभी सामन्त एकबारगी पोछे की ओर खिसक गये। युद्ध-शिविर में जो धन और रसद था वह सब पोय्सलों के हाथ लग गया।
बिट्टिदेव के वेलापुरी पहुँचने के एक पखवाड़े के अन्दर-अन्दर गंगराज की इस विजय का समाचार राजधानी पहुंच गया। बाकी दण्डनाथों के साथ गंगराज राजधानी में कब तक पहुँच सकेंगे, इसकी सूचना भी मिली। उनके भव्य स्वागत की तैयारियाँ राजधानी में होने लगा। उनके लौटने पर विजयोत्सव मनाने के लिए दिन पक्का करने को बात राजमहल में तय हुई । अभी गोवा की तरफ से एचम और बिट्टियण्णा के बारे
४० :: पट्रम्हादळी शान्नला : भाग चार