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आशय तक सहज ही में नहीं पहुँच पाते कि किस स्तर के कौन-कौन व्यक्ति इसमें कारणकर्ता हैं । " इतना कहकर शान्तलदेवी ने, यादवपुरी का जितना समाचार वह जानती थीं, वह सब कह सुनाया। फिर बोलीं, "यहाँ प्रतिष्ठा उत्सव पर जो घटना घटी उसके अनुभव से जब इस बात पर विचार करते हैं तो लगता है कि इसमें विलम्ब नहीं करना चाहिए । इसलिए तुरन्त ही जहाँ श्रीवैष्णव जन संख्या अधिक दिखती है उन सभी स्थानों पर हमें अपने गुप्तचर भेजकर समाचार संग्रह करना होगा। अभी कोनेय शंकर दण्डनाथ ने जो पत्र भेजा हैं वह भी किसी के उकसाने से ही लिखा गया है। मुझे लगता हैं, इस सम्बन्ध में स्वयं रानी को भी मालूम नहीं। इसलिए उन्हें खबर न देकर मैं स्वयं सीधे यदुगिरि और यादवपुरी हो आने की सोच रही हूँ।" शान्तलदेवी ने कहा ।
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" ती हमारे दण्डनाथ ?"
" ऐसा सोचने की जरूरत नहीं कि उनका व्यवहार शंकास्पद हैं। उन्हें श्रीवैष्णव पर विशेष अभिमान है। वे हाल में श्रीवैष्णव बने हैं। अभी उमड़ती जवानी है। उनमें उत्साह होना सहज है। किसी उनके कान उन लिए हो ऐसा प्रलोभन भी दिया हो कि यह काम हो जाने से श्री आचार्यजी महाराज के वे प्रिय बन जाएँगे और फिर महादण्डनायक या प्रधान बना दिये जाएँगे, ऐसा सब कहकर पत्र लिखवा दिया हो। इसलिए हम किसी पर संशय न करें। गुप्तचरों का काम चलने दें। हम भी हो आएँ। मेरे साथ मेरे मामा रहेंगे तो यहाँ कोई कष्ट तो न होगा आपको ?"
"बड़े हेग्गड़ेजी यहीं होंगे, उनसे सलाह ले लूँगा। साले से भी अधिक अनुभवी हैं बहनोईजी। पहले से वे सारी बातें जानते हैं। बैठे-बैठे ही वे अच्छी तरह विवेचना कर सकेंगे। परन्तु इस बात पर पुनर्विचार करें तो अच्छा होगा कि पट्टमहादेवीजी का जाना जरूरी हैं ?" मादिराज ने कहा ।
"क्यों ? भय हैं क्या?" शान्तलदेवी ने पूछा ।
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'भय नहीं। फिर भी, सर्वत्र पट्टमहादेवी की प्रशंसा होने पर भी मतान्तरित होना आपने स्वीकार नहीं किया, इस वजह से कहीं-कहीं कुछ वर्गों में असन्तोष हैं। इसलिए स्वयं जाएँ और ऐसे लोगों में जाएँ यह ठीक होगा या नहीं, यह सोचने की बात हैं। अलावा इसके कि अभी महासन्निधान भी यहाँ नहीं हैं।" मादिराज बोले ।
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आप शंकित न हों। मैंने जाने का निश्चय कर लिया है। मेरी रक्षा के लिए
मेरे मामा रहेंगे, और रेविभय्या तो रहेगा ही। साथ में सारा दल भी रहेगा।"
ऐसा ही निर्णय हुआ। टकसाल का सारा काम मादिराज ने स्वयं अपनी देखभाल में करवाया। उन्होंने भिन्न-भिन्न मूल्य के तीन तरह के सिक्के ढलवाये। गंगराज के पास उनकी आवश्यकता की पूर्ति के लिए जितना धन भेजना था, उसे सैन्य-दल के साथ भेज दिया। फिर ग्रामों के अधिकारियों के पास खबर भेजकर युद्ध-क्षेत्र में रसद भिजवाने की भी व्यवस्था कर दी।
70 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार