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करीब खाली हो गये हैं। अन्न केवल राजमहल के लिए सुरक्षित ग्रामीण खाद्य-भण्डारों से अनाज और धन का संग्रह करके भेजना होगा। ग्रामीण भण्डारों में धन कम रहता है, इसलिए नये सिक्के ढलवाकर भेजने के सिवा दूसरा कोई उपाय नहीं है।
"आवश्यक होने पर करना ही पड़ता है। परन्तु आप के पास इतना सोने का संग्रह होना चाहिए न?"
"तलकाडु के युद्ध में वहाँ का जो भण्डार हमारे कब्जे में आया था, उसकी सोने की सभी मुद्राओं को सन्निधान अपने साथ लाये थे। वह ज्यों की त्यों भण्डार में सुरक्षित हैं।"
"ठीक, उसे गलवा कर हमारे सिक्कों में परिवर्तित करवा दीजिए।" "एक सलाह है; गलत हो तो माफ करें।" "कहिए!"
"मुझे लगता है कि दो-तीन किस्म के सिक्के बनवाये जाएं। उनमें हमारा पोय्सल शार्दूल चिह्न ही रहेगा। वह सिक्का जहाँ भी जाए, पता लग जाएगा कि पोय्सलों का है। साथ ही कुछ सिक्कों पर 'मलेपरोल गॉड' और कुछ पर 'तलकाडु गोंड' पचावे तो महासन्निधान के जमाने में यह सिक्का चला था, भावी इतिहास में यह भी ज्ञात रहेगा।"
"सलाह तो अच्छी है । इस विषय में सन्निधान की स्वीकृति भी होती तो अच्छा था!" ___“वित्त-सचिव की सलाह सराहनीय है। सन्निधान की स्वीकृति मिल ही जाएगी। आखिर सन्निधान की कीर्ति को प्रकाश में लाने का ही तो कार्य है। हमें संकांच की आवश्यकता नहीं है। ये सिक्के यदि थोक व्यापारियों द्वारा अन्य राज्यों में भी प्रवेश करेंगे तो वह उन्हें प्रभावित करेंगे । इसलिए पट्टमहादेवीजी वित्त-सचिव की सलाह पर सम्मति दें।" सिंगिमय्या ने कहा।
"ठीक वैसा ही कीजिए। जिन स्वर्णमुद्राओं को हमारे सिक्कों के रूप में परिवर्तित करना है, उन्हें तुलवा लीजिए। अभी जितनी आवश्यकता हो उतने ही सिक्के ढलवाएँ। फिर, कोवलालपुर और कंची से भी जीती हुई निधि भण्डारों में आएगी न? साथ ही उन बारह सामन्तों के भण्डार भी हाथ लगेंगे। यह सुनने में आया है कि उन बारह सामन्तों में उच्चगीवालों के पास बहुत धन है। प्रतिष्ठा-समारोह में उस गुप्तचर से हमने इसका पता लगवा लिया था। जैसा हमें लगता है, इस दोहरे युद्ध, तिहरे हमले...आखिर उस उच्चगो के पाण्ड्य के पराजित हो जाने पर, सम्पूर्ण नोलम्बवाड़ी हमारे कब्जे में आ जाएगी। जीत से खुशी तो होगी, यह सच है। परन्तु इसके लिए कितने लोगों के प्राणों की हानि हुई होगी? इस मानव-यज्ञ को पूरा किये बिना क्या राष्ट्र में सुख-शान्ति नहीं रह सकती?" शान्तलदेवी ने कहा।
68 :: यट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार