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में हुई। उसमें जमीन पर जीने की शक्ति नहीं थी। यही मत्स्यावतार है । दूसरा कूर्मावतार, वह पानी और जमीन दोनों पर जी सकनेवाले जीव का प्रतीक है। जीव का तीसरा स्तर मेढक है जो जल और जमीन दोनों पर रह सकता है अर्थात् जमीन पर पानी में जी सकता है। इसलिए उस देव का नाम 'कप्पे (मेढक) चेन्नकेशव' हो तो उसमें क्या गलत है ? यह एक अपूर्व विषय है। इसलिए इसे इसी अभिधान से अभिहित कोंगे। उस बालक के मुँह से जो बात निकली वह अन्त:प्रेरणा से ही निकली होगी।। आगमशास्त्रियों ने कहा।
वैसा ही किया गया।
उस दिन कुछ प्रमुख लोगों को निमन्त्रित किया गया था। उनके लिए इस प्रतिष्ठा-महोत्सव पर विशेष भोज की व्यवस्था भी की गयी थी। दण्डनायिका एचियक्का, शान्तलदेवी, पद्मलदेवी एक साथ अगल-बगल बैठी थीं। इधर-उधर की बातों के सिलसिले में पद्मालदेवी ने कहा, "सुबह प्रतिष्ठा-समारम्भ के समय अचानक मेरे मन में एक विचार आया। यदि वह सफल हो जाए तो बहुत खुशी होगी।" इतना कहकर वह चुप हो गयी।
"क्यों? चुप क्यों हो गयीं? क्या विचार आया है ?" शान्तलदेवी ने पूछा। "कुछ नहीं। मेरे माता-पिता की आशा अधूरी रही आयो।" पालदेवी ने कहा।
"कैसे? एक के बदले तीन गुना सफल हुई न! वास्तव में तब अकेली आपका विवाह भावी महाराज से करना चाहते थे। उसके बदले तीनों का विवाह उनसे हो गया तो फल तिगुना मिला न!" ।
"फल तिगुना नहीं, तीन-तेरह हो गया। जाने दें। अब इस बात की जरूरत नहीं। उसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं। उस दर्द को भुगता है। स्थूल रूप से एक तरह से सफल होने पर भी, वह पूर्ण नहीं हुआ। एक घराने का दूसरे घराने के साथ सम्बन्ध हो जाए तो उसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ाते रहना चाहिए। हम तीनों के रानियाँ होने पर भी वह सम्बन्ध नहीं बढ़ सका।' कुछ खिन्न होकर पद्मलदेवी ने कहा।
"आपके पुत्र कुमार नरसिंह और बोषिदेवी की पुत्री को भगवान् ने बचा दिया होता तो आपके मुंह से यह बात निकलने का मौका ही नहीं रहता।" शान्तलदेवी ने
कहा।
"यह हमारा दुर्भाग्य था। उस बात को जाने दीजिए। उसके बारे में मैं सोच नहीं सकती। अपनी माँ की विचारधारा जैसी किसी भी तरह की बात मैं नहीं सोच सकूँगी। यों करने पर यों होगा अथवा यों करें तो यह फल मिलेगा, इस तरह का विचार मन में नहीं आने दूंगी। मेरे मन में विचार आया भी तो एक अनमोल मुहूर्त में । सम्बन्धित सभी के सामने मैं उसे प्रस्तुत कर रही हूँ। बाद में आप ही लोग निर्णय करें। फिर भी मेरी बात धृष्टतापूर्ण समझें तो मुझे क्षमा कर दें। मेरी इस भाभी के दो बच्चे हैं । वे मेरे
60 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग प्यार