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पिता के पौत्र हैं। उन बड़े मरियाने दण्डनायक के वंश के अंकुर हैं। मेरे भाई ने बड़े की सगाई निश्चित कर रखी है। छोटे भरत को अगर पट्टमहादेवीजी अपना दामाद बना लें तो हमारे पिताजी की आशा थोड़ी-बहुत पूरी हो जाएगी, ऐसा मेरे मन को प्रतीत हुआ। इस प्रतिष्ठा-महोत्सव के समय इन दोनों को मन्दिर के गर्भगृह के द्वार पर
आमने-सामने खड़े देखा तो लगा कि यह जोड़ी अच्छी रहेगी। जैसा लगा, मैंने कह दिया। निर्णय आप लोगों का।"
शान्तलदेवी ने तुरन्त कुछ नहीं कहा। दण्डनायिका एचियक्का ने अपनी ननद की ओर इस अन्दाज से देखा कि उससे पूछे बिना एकदम यों ही कह दिया? फिर स्वयं चुप रहे आएं तो उचित होगा समझकर बोली, "यह कैसे भला?" हम ठहरे
आखिर राजमहल के नौकर, उनके आश्रय में जीनेवाले। पट्टमहादेवी जी की पुत्री का विवाह एक साधारण दण्डनायक के पुत्र के साथ! ऐसी माँग करेंगे तो लोग क्या कहेंगे? वे चाहे हमारे घर से लड़की ले सकते हैं, लेकिन राज-परिवार की लड़की को माँगना व्यावहारिक होगा?"
"आप दोनों के कथन में एक सद्भावना है। रानीजी की अभिलाषा एक मानव सहज अभिलाषा है। एक बार जो सम्बन्ध हो गया वह ऐसे ही बढ़े, यह इच्छा बहुत ही अच्छी है, उचित भी है। दण्डनायिकाजी की बात लौकिक एवं व्यावहारिक दृष्टि सं ठीक है। स्थान मान, हस्ती-हैसियत को महत्त्व देनेवाले लोगों की क्या प्रतिक्रिया हो सकती है, उसे सोचकर उन्होंने यह बात कही है। इस राजमहल की परम्परा को मैंने महामातृश्री से सीखा है। यहाँ स्थान-मान प्रतिष्ठा आदि से अधिक महत्त्व गुण और मानवीयता को दिया जाता है। ऐसा न होता तो मैं एक साधारण हेग्गड़े की पुत्री इस स्थान पर बैठ सकती थी? आप लोग ऐसा मत समझिए कि मैं अपनी प्रशंसा करने लगी। उन्होंने मुझमें जो गुण पहचाना उसके लिए मान्यता मिली। मैं ही इसका प्रथम उदाहरण नहीं, हमारे बड़े मरियाने दण्डनायकजी भी अपने गुणों के कारण ही राजपहल के प्रेमपात्र बने । ऐसी स्थिति में रानीजी का यों विचार करना अनुचित नहीं। इसी तरह अपने मामा सिंगिमय्या की बेटी को अपनी बहू बना लूँ तो यह भी अनुचित न होगा। रानीजी का विचार मेरे लिए मान्य है । सन्निधान और दण्डनायकजी युद्ध से लौट आएँ तो उनके सामने प्रस्ताव रखेंगे, उनकी स्वीकृति मिलने तक प्रतीक्षा करनी होगी।' शान्तलदेवी ने कहा।
पद्मलदेवी को शान्तलदेवी की यह बात सुनकर सन्तोष हुआ। चामलदेवी ने अपनी बगल में बैठी सिरियादेवी से पूछा, "तो सिरियादेवी ने अपनी बेटी को राजमहल में ब्याह देने की बात सोची है?"
"मैंने कुछ नहीं सोचा है। पट्टमहादेवीजी बेटी को माँगें तो हम, मैं और मेरे पतिदेव, इनकार कैसे कर सकते हैं ? हमारी लड़की के भाग्य में जो होगा सी ही होगा,
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 61