________________
भेजना पड़ेगा। बैरियों पर गुप्तचर रखना ठीक है, मगर हमारे अपने ही लोगों पर गुप्तचरों को तैनात करना पड़े तो यह बड़े ही दुर्भाग्य की बात है। पहले भी एक बार ऐसा हुआ था, वह सब हम जानते हैं। कुछ भी हो, सन्निधान अभी यहाँ उपस्थित नहीं हैं, आचार्यजी भी यहाँ नहीं हैं। ऐसी हालत में नागिदेवण्णाजी असहाय हो जाते हैं, गुप्तचरों को भेजना उपयुक्त हैं। वित्त सचिव मादिराज और सिंगिमय्या को बुलवाकर उनसे विचार-विमर्श करूँगी।" शान्तलदेवी ने कहा।
"वहाँ कौनेय शंकर दण्डनाथ को भेजा जा चुका है न?"
64
'अभी वह युवा हैं, उस पर पूरी तरह निर्भर करना ठीक नहीं होगा।" 'वास्तव में स्मरण ही नहीं कि कभी मैंने उनका नाम सुना हो। अभी हाल में 'जब वह आये तभी उन्हें देखा है।" एचियक्का ने कहा ।
"नाम शंकर होने पर भी उसे श्रीवैष्णव के प्रति विशेष आकर्षण है। शायद इसीलिए उसे यादवपुरी भेजने की बात सोची है, जिससे आचार्यजी के कार्यों में सहूलियत हो ।" शान्तलदेवी ने कहा ।
"नागिदेवण्णाजी अभी एक तरह से निर्लिप्त हैं। वे यदि तिरुवरंगदास के धुन पर नाचने लगे तो अन्य मतानुयायियों को तकलीफ न होगी ?" एचियक्का ने प्रश्न
किया।
66
L
'अब तक ऐसा कुछ हुआ है ?"
"
अब तक तो नहीं हुआ। और फिर, दण्डनायकजी जब तक वहाँ रहे तब तक कुछ नैतिक भय भी था।"
"
'आचार्यजी के उत्तर की ओर जाने पर यहाँ उनके कुछ चेलों की प्रतिष्ठा अपनी नजर में बढ़ गयी-सी लगती हैं। वे यहाँ होते तो इन सबके लिए मौका नहीं मिलता। प्रतिष्ठा-समारम्भ के समय भी कोई बाधा न हुई होती । बाधा उपस्थित होने के कारण मुझे विशिष्ट सेवा के लिए अवसर मिला। उस दिन की संगीत सेवा और नृत्य - सेवा के लिए दूसरे ही व्यक्तियों की नियुक्त किया गया था। लोग ऐसे मूर्ख हैं जो समझते हैं कि यदि मुर्गा लॉंग न दे तो सवेरा ही नहीं होगा। यह बात इसकी साक्षी है। शायद उन लोगों ने समझा होगा कि ठीक समय पर उन्हें न आने देने पर कार्यक्रम में अव्यवस्था हो जाएगी, उसमें कमी रह जाएगी ।"
"तो पट्टमहादेवीजी का विचार हैं कि उन व्यक्तियों को न आने देने में किसी का हाथ था?"
44
'हाँ, वे कौन हैं और क्या सब हुआ, यह सब मैं जानती हूँ। हमने उसकी ओर ध्यान भी नहीं दिया ।"
" ये लोग भी कितने बुरे हैं। जिनका नमक खाया उन्हीं को निगल जायें! ऐसे लोगों को तो सूली पर चढ़ा देना चाहिए।"
64 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार