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तख्ता उलट देने के लिए ही वे इकट्ठे हुए थे। चालुक्य के ये मण्डलेश्वर अलगअलग भी काफी शक्तिशाली थे। एक-एक का सामना करना ही जब दुःसाध्य था तो इनकी एकत्रित सेना का सामना करना कितना कठिन न रहा होगा? अभी तलकाडु में जो भयंकर युद्ध हुआ था, उसमें बिट्टिदेव ने जयमाला धारण की थी। परन्तु लोगों को यह भी मालूम था कि इस युद्ध में इनकी काफी शक्ति नष्ट हो चुकी है। और फिर, एरेयंग प्रभु के मरने के बाद लगातार एक के बाद एक युद्ध होते ही रहे हैं। ऐसी हालत में कितनी सेना संगठित की जा सकती, और बढ़ायी जा सकती? चालुक्य जगदेकमल्ल विक्रमादित्य का यह खयाल था कि अपने वश में अनेक मण्डलेश्वर हैं। उन्हें एकत्र कर लेने पर इस बिट्टिदेव को धूलिसात कर देना कौन-सा बड़ा काम है ? इसके लिए उन्होंने सबको उकसाकर बिट्टिदेव के विरुद्ध लड़ाई करने के लिए यही समय चुना था। परन्तु पहले जब सामन्त जग्गदेव से युद्ध हुआ था तब से किस तरह युवकों को प्रोत्साहित कर पोय्सल अपनी सैन्य शक्ति को बढ़ा रहे हैं, यह विक्रमादित्य को मालूम नहीं था। अपने गुप्तचरों से भी यह मालूम नहीं हो सका कि इस तरह गाँव-गाँव से युवकों को संगठित कर सैन्य शक्ति बढ़ायी गयी है और व्यापक रूप से यह कार्य चल रहा है। चालुक्यों ने समझा था कि विजय अपनी ही है। प्रतिष्ठा-महोत्सव के सन्दर्भ में लोगों की भीड़ में अपने गुप्तचरों को छोड़कर अन्दर ही अन्दर संघर्ष पैदा करके लोगों ने अनबन पैदा करने की योजना बना ली। स्वयं राजा के मतान्तरित हो जाने पर भी पट्टमहादेवी द्वारा पतान्तर स्वीकार न किये जाने से, उन दोनों की इस मतभिन्नता को तूल देकर जनता में भ्रम फैला दें और जनता की एकता छिन्न-भिन्न कर कमजोर बना दें--यही सब सोच रखा था उन्होंने । कुल मिलाकर चालुक्यों के इस गुट का यही खयाल था कि उनका सामना कोई नहीं कर सकेगा, कोई उनके बराबर नहीं हो सकेगा।
परन्तु उनको यह भी मालूम नहीं था कि उनके द्वारा भेजे हुए गुप्तचर दल की क्या हालत हुई। वे बेधड़क आगे बढ़ते ही जा रहे थे। पोय्सल-सेना के प्रधान संचालक गंगराज को शत्रुसेना की गतिविधि आदि के बारे में समय-समय पर समाचार मिल जाता था। उन्हें इस बात की जानकारी थी कि अपनी सेना कितनी ही बड़ी क्यों न हो, चालुक्यों के इस सम्मिलित सैन्य के बराबर नहीं हो सकती। इसलिए गंगराज ने निश्चिय किया था कि आक्रमण, सुरक्षा, व्यूहरचना के बारे में विशेष व्यवस्था करनी होगी, इस विषय पर विचार-विनिमय करने के लिए एक विशेष बैठक हुई। उसमें गंगराज, मायण, मंचियरस, एचम, बिट्टियण्णा, बम्मलदेवी और स्वयं महाराज बिट्टिदेव ने भाग लिया।
"उन लोगों ने भ्रम में पड़कर यह समझा होगा कि हमारी एकता को तोड़ दिया है। इसलिए हम ही हमला शुरू कर दें तो अच्छा होगा," मंचियरस ने सलाह दी। "इसके अलावा यह भी है कि हमारा अश्वदल बलवान् है, वह एकत्र होकर शत्रुओं
56 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार