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पर धावा बोल दे तो उनकी सेना में खलबली मच जाएगी और वह तितर-बितर हो जाएगी। वही हमारी जीत के लिए नान्दी होगा।" मंचियरस ने सूचित किया।
परन्तु बिट्टियण्णा की सलाह इसके विपरोत थी। उसने कहा, 'हमे अश्वदल को सुरक्षित रखना होगा। नवागत नोड़ों को शिक्षित होकर हमारे साथ सम्मिलित होना हो तो उसके लिए समय लगेगा। शुरू में ही हम अपनी शक्ति का उपभोग करने लग जाएँ तो उन्हें हमारी क्षमता मालूम हो जाएगी। अभी तो उन्हें दुविधा में डाल कर सताना चाहिए। यह एक तरह से विलम्बित मार्ग होगा, सच है, फिर भी वर्तमान स्थिति में यही उपयुक्त है। इससे एक तो हम सीधे हो सकने वाले हमले को रोक सकते हैं। साथ ही चारों ओर से कई जगहों से हमला आरम्भ करके उनके इरादों को कुचल सकेंगे। मंचियरस, मैं, मायण हम तीनों तीन ओर से यह शीतयुद्ध शुरू कर दें तो अच्छा है।"
"दोनों की राय में लक्ष्य एक ही है-वह है शत्रु को भ्रम में डाल देना। मगर एक बात है। कुँवर बिट्टियण्णा ने जो कहा उसका मैं अनुमोदन करता हूँ। शुरू में ही हमें अपनी अश्वशक्ति का उपयोग नहीं करना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर ही उसका उपयोग करना ठीक होगा। तब तक उसे सुरक्षित ही रखना चाहिए। शत्रु को आगे का कार्यक्रम क्या है, इसे जानने के लिए कुछ समय तक तटस्थ रहेंगे। यदि उनकी तरफ से जोरों का हमला शुरू होता है तो हम सामना करने के लिए तैयार हैं ही। ऐसा न होकर अगर वे हमारी गतिविधियों को जानने के उद्देश्य से तटस्थ ही बैठे रहेंग, तो जैसा बिट्टियण्ण्या ने कहा, हमारी मूल सेना को यहीं शिविर में रखकर, बाकी सेना को तीन भागों में विभक्त कर मंचियरस, मायण और बिट्टियण्णा के नेतृत्व में शीतयुद्ध शुरू कर देंगे।" गंगराज ने सलाह दी।
__ "मेरे पति मेरी मदद के लिए यहीं सन्निधान के साथ रहें तो अच्छा है। उनके बदले दण्डनायक एचमजी को इसके लिए भेजा जा सकता है, अगर प्रधानजी सही मानें - सो1 चट्टलदेवी ने निवेदन किया।
जवानी के उत्साह में एचम गंगराज के कुछ कहने के पहले ही बोल उठा, "चट्टलदेवी की सलाह बहुत ठीक है। मायणजी सन्निधान के साथ रहें । मैं एक सैन्य टुकड़ी को लेकर चल दूंगा।"
ऐसा ही निर्णय हुआ।
इसलिए फिलहाल तटस्थ रहकर ही हमारी सेना शिविर में रहेगी। शत्रुओं की गतिविधि को जानने के लिए गुप्तचरों का दल चौकन्ना होकर काम में लग जाए----यह निर्णय हुआ। दो-तीन दिनों के अन्दर-अन्दर यह निश्चित खबर मिली कि चालुक्य विक्रमादित्य युद्धक्षेत्र में नहीं आये हैं।
इसी तटस्थता में एक सप्ताह गुजर गया होगा। इतने में तलकाडु और कोषलालपुर से पत्र आये। समाचार था कि कंची पर कब्जा करने के लिए यह बहुत ही उपयुक्त समय है।
पट्टमहादेखी शान्तला : भाचार :: 57