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जानेवाले को देख रहे हैं। पट्टमहादेवीजी को मदद के लिए गोम्मट स्वामी ही वहाँ उपस्थित होकर रास्ता बना रहे हों. ऐसा मालूम हो रहा था।" स्थपति ने कहा।
"तो आपने किसी को नहीं देखा?" पुजारी ने पूछा। "नहीं।" "मैंने देखा था।" रेत्रिमय्या ने कहा।
सबकी दृष्टि उस भोर गपी ! वर आँखें बन्द करके हाथ जोड़े खड़ा था। उसने कहा, "अम्माजी, उस दिन जब तुम और छोटे अप्पाजी उस कटवा पर थे तब मैंने वहीं से गोम्मट स्वामी को जैसा देखा था उसी प्रकार वहाँ देखा। बात बहुत पुरानी हैं। तब स्वामी जहाँ खड़े थे, वहीं से आप दोनों को आशीर्वाद दिया था। शंख, चक्र, गदा, पद्म युक्त किरीट धारण कर, कुण्डल पहने जैसे दर्शन दिये थे, उसी रूप में अब मुस्कराते हुए आते स्वामी को देखकर वे सब तिलकधारी चकित हो गये और रास्ता छोड़ दिया। परन्तु स्वामी जय लौटने लगे तो अपने निजरूप में जैसे अब यहाँ खड़े हैं, नान होकर लौटे। अम्माजी, तुमने संगीत-सेवा के समय जो गीत गाया, उसे भी हमारे गोम्मट स्वामी ने सार्थक बनाया। उसने दिखा दिया कि वह अनन्त रूप हैं।" रेविमय्या ने भावविभोर होकर कहा।
उसकी बात सुनकर जकणाचार्य ने पूछा, "यह अम्माजी कौन हैं? छोटे अप्पाजी कौन हैं?"
रेविमय्या ने आँखें खोली। स्थपति के प्रश्न को सुनकर वह दिग्भ्रान्त-सा हो गया।
"यह हमारा रेनिमय्या बहुत भावुक है। यह आज का रेविपच्या नहीं। मैं जब छोटी बच्ची थी तब यह मुझे गोदी में, कन्धे पर उठा लेता और खिलाता रहता था। तब मुझे यह अप्पाजी कहकर पुकारता था। सन्निधान तब सबके लिए छोटे अप्पाजी थे। यह अभी भी उस पुराने समय से जुड़ा हुआ है। उसका अपना ही एक ढंग है।" शान्तलदेवी ने कहा।
रेविमय्या की आंखों में आँसू छलक पड़े।
"अहा, वह दिन कितना शुभ था! हमें भी मालूम है। छोटे अप्पाजी उस छोटे पहाड़ पर खड़े गोम्मट को देखते ही रहे । वह दृश्य अभी भी मुझे याद है।" पद्यलदेवी ने कहा।
"उसे भूल कैसे सकते हैं ? मैं और मेरी यह दीदी पत्थर पर अपना नाम उकेरने में मग्न थीं। हमारी ओर किसी का ध्यान ही नहीं रहा। जब हमें मालूम पड़ा कि पहाड़ पर केवल हम दो ही हैं तो हम डर के मारे काँप गयी थीं । भाग्य से यह रेविमय्या और छोटे अप्पाजी दोनों ऊपर थे। तब हमें कुछ धीरज बँधा।" चामलदेवी ने बताया।
"तब इन्हीं पुजारीजी ने कहा था कि हमारी पट्टमहादेवी कैसा गाती हैं।"
पट्टमहादेवो शान्तला : भाग घार :: 49